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मुलाचार प्रदीप]
( ४३३ )
[ दशम अधिकार
आहार का त्याग है । तथा दूसरा सन्यास इसप्रकार धारण करना चाहिये कि यदि मैं अपने पुण्य से इस घोर उपद्रव से कदाचित बच जाऊंगा तो मैं धर्म और चारित्न की सिद्धि के लिये इतने काल के बाद अवश्य ही पारणा करूगा ।।२८१६. २८२०॥
तीन प्रकार के आहार के न्याग की विधियदि नोरं बिनाप्रत्याख्यानमावातुमिच्छति । तदा समाधयेस्वास्येदंप्रत्याख्यानमाचरेत् ॥२८२१॥ प्रत्याख्यामि बिना नीर चतुर्धाहारमामृतौ। अन्तर्वाहोपधीन सर्वान् सावध त्रिविषेन च ॥२२॥ यः कश्चिदुपधिर्मेब्राह्मोवाभ्यन्तरोऽशुभः । समाहारं शरीरं च पावजीवं त्यजाम्यहम् ।२८२३।।
अर्थ-पदि वह क्षपक उस समय पानी को रखना चाहता है, पानी को छोड़ कर बाकी का त्याग करना चाहता है तो उसे अपनी समाधि धारण करने के लिये नीचे लिखे अनुसार प्रत्याख्यान वा त्याग करना चाहिये । मैं अपने मरण पर्यंत पानी को छोड़कर बाकी के चारों प्रकार के आहारों का त्याग करता हूं तथा मैं मन-वचन-काय से अंतरंग और बाह्य समस्त परिग्रहों का त्याग करता हूं और समस्त पापों का त्याग करता हूँ। इस समय मुझसे संबंध रखने वाला जो अशुभ बाह्य और प्रभ्यंतर परिग्रह है, मैं उसका जीवन पर्यंत तक के लिये त्याग करता हूं तथा जीवन पयंत ही आहार और शरीर का त्याग करता हूं, शरीर से ममत्व छोड़ता हूं ॥२८२१-२८२३॥
___ मरण के निश्चित होनेपर ४ आहार के त्याग की प्रेरणाअथवा स्यस्यनिश्चिरयमरणं प्रागतं भुवि । प्रत्याख्यानमितिमाहा वक्षः सिद्ध चतुर्विधम् ॥२४॥
अर्थ-अयवा यदि अपने मरने का अवश्य निश्चय हो जाय तो चतुर पुरुषों को मोक्ष प्राप्त करने के लिये चारों प्रकार के आहार का प्रत्याख्यान ग्रहण कर लेना चाहिये ॥२८२४॥ प्रथम समाधिधारण करनेवाले का पहले बतायी विधि से मरण करने की प्रेरणा एवं उसका फलएषोऽपि पूर्ववत्सर्वान् धर्मध्यानाविकान्परान् । स्वीकृत्य साधयित्वायु चतुराराधमा: पराः ।। समाधिना वपुरल्यात्वासन्यासाजिनधर्मतः । सौधर्माबिसपासिम्पन्तंघमंधीवजेत् ।।२८२६।।
अर्थ-इस क्षपक को भी पहले के समान उत्कृष्ट धर्मध्यानाविक सब धारण करने चाहिये, चारों प्रकार की प्राराधनाओं को प्राराधन करना चाहिये और समाधिपूर्वक सन्यास से शरीर का त्याग करना चाहिये । इसप्रकार समाधिमरण करनेवाला