Book Title: Mulachar Pradip
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 476
________________ पुलाचार प्रदीप ] ( ४३१ ) [ दशम अधिकार यदि सन् जपितु योगो सोऽसमर्या गिरा तथा । ध्यायेत्पंच नमस्कारश्चेतसा परमेष्ठिनाम् १२८०८ | अर्थ - इसप्रकार चितवन करते हुए उस क्षपक की यदि मृत्यु अवस्था अत्यंत समीप श्रा जाय तो उसे अपने वचन से परमेष्ठी के वाचक पांचों श्रेष्ठ पदों का जप करना चाहिये अथवा किसी भी एक दो पद का जप करना चाहिये । यदि वह योगी उन परमेष्ठी के वाचक पदों को उच्चारण पूर्वक जप करने में असमर्थ हो जाय तो उसको अपने हृदय में ही पंचपरमेष्ठी के त्ाचक पंच नमस्कार मंत्र का ध्यान करना चाहिये ।। २८०७-२८०८६ ।। क्षपक किस प्रकार प्राणों का त्याग करे - इत्यादिसर्वयत्नेनध्यामन् जपन्पवोत्तमान् । कुर्वन् वा स्वात्मनोध्यामंसृण्वन् निर्यापैकास्यजान् ॥ सारधर्माक्षरान् ध्यानी निःशल्योनिर्भयः सुधीः । ध्यानाम्यां धर्मशुक्लाभ्यां स्वजेत्प्राणान्समाधिना ॥ अर्थ - इसप्रकार शल्य रहित, भय रहित, ध्यान करनेवाले उस बुद्धिमान् क्षपक को ऊपर लिखे अनुसार सब तरह के प्रयत्न पूर्वक पंच परमेष्ठी के वाचक उत्तम पदों का जप करते हुए, ध्यान करते हुए, वा श्रपने आत्मा का ध्यान करते हुए अथवा उन निर्यापकाचार्य के मुखसे निकले हुए सारभूत धर्म के अक्षरों को सुनते हुए धर्मध्यान तथा शुक्लध्यान को धारण कर समाधि पूर्वक अपने प्राणों का त्याग करना चाहिये । ॥२८०६-२६१०॥ श्रेष्ठ मृत्यु को सिद्ध करनेवाले क्षपक मरकर कहां उत्पन्न होता है ततोसौ शुद्धिमानोऽहमिन्द्रपदभूजितम् । नाकं सर्वार्थसिद्धि वा गच्छेत् सम्मृतिसाधनात् ।। २८११॥ अर्थ - तदनंतर अत्यंत शुद्ध अवस्था को प्राप्त हुआ वह क्षपक श्रेष्ठ मृत्यु को सिद्ध कर लेने के कारण उत्कृष्ट अहमिद्र पद प्राप्त करता है या सर्वार्थ सिद्धि में उत्पन्न होता है अथवा स्वनों में उत्तम देव होता है ॥२८११॥ समाधिमरण से उत्पन्न श्रेष्ठ धर्म से किसकी प्राप्ति होती है- सन्यासोस्थ सुधसुदेवनगतोसुखम् । महत्त्रिभवपर्यन्तंसुरेशचक्रसूतिजम् ॥ २६१२ ॥ भुक्त्वाहस्यास्वकर्माणि तपसस्यान्तिनिर्वृतिम् । पण्डिता मुनयः प्राप्यह्मष्ठसिद्धगुणान् परान् ॥ अर्थ - इस समाधिमरण से उत्पन्न हुए श्रेष्ठ धर्म से विद्वानों को वा मुनियों को उत्तम क्षेत्र गति वा उत्तम मनुष्यगति में सर्वोत्तम सुख मिलते हैं तथा तीन भव तक a ra और चक्रवर्ती की विभूतियों का अनुभव कर अंत में अपने तपश्चरण के द्वारा

Loading...

Page Navigation
1 ... 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544