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मूलाचार प्रदीप]
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[ दशम अधिकार अर्थ-यह चारों प्रकार की प्राराधनारूपी देवता तीनों लोकों में पूज्य है, तीनों लोकों में वंदनीय है, मोक्ष सुख देनेवाली है, धर्मरत्न की खानि है, श्रेष्ठ मुनिराज ही नित्य इसका सेवन करते हैं, यह समस्त कर्मों को नाश करनेवाली है, नरक के घर को बंद करने के लिये वेंडा है, सबमें सार है, स्वर्ग की सीढ़ी है, अनेक सदगुणों को उत्पन्न करनेवाली है और तीर्थकर हो पाती है। ऐसी इस पाराधना को मैं प्राराधना प्राप्त करने के लिये नमस्कार करता हूं ॥२८२६॥ इसप्रकार प्राचार्य श्रीसकलकीति विरचित मूलाचार प्रदीप नामके महाग्रन्थ में प्रत्याभ्यान संस्तर
को वर्णन करनेवाला यह दसवां अधिकार समाप्त हुआ।