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मूलाचार प्रदीप]
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[ दशम मधिकार धर्मात्मा जिनधर्म के प्रमाद से सौधर्म स्वर्ग से लेकर सर्वार्थ सिद्धि लक उत्तम देवों में जन्म लेता है ।।२८२५-२८२६।।
पण्डित मरण करने का फलइलिगरावरजातंपण्डितारूपंप्रयत्नावनधारणसारं साधयेद्या स्वसिस ।। सुरनरपतिसौख्यं प्राप्पमुक्त्यंगम स श्रर्यात परमयोगात्कृतस्नकर्मारिणहत्वा ।।२८२७।।
अर्थ- इसप्रकार जो भव्य जीव अपने आत्मा को सिद्धि के लिये भगवान गणधरदेव के द्वारा कहे हुए पाप रहित और सारभूत इस पंडितमरण को प्रयत्नपूर्वक सिद्ध कर लेता है वह जीव इन्द्र और चयत्तियों के सुख भोगकर तथा अंतमें परमयोग धारण कर समस्त कर्मो को नाश करता है और फिर मोक्षस्त्री को प्राप्त कर लेता है ॥२८२७॥
बुद्धिमानों को पण्डित मरण की पुनः प्रेरणामत्वेतोह अधाप्रयरनमानसास्वमुक्तिसंसिद्धये, कृत्वा सत्सपजितंनिरुपमंसा समस्सर्वतः । जन्मान्तेकिलसापपन्तुमरणसत्पण्डिताल्यपरं,
स्याय नावनजम्मसनततपःसर्वार्थसिद्धिप्रदम् ।२८॥ अर्थ-यही समझकर बुद्धिमानों को स्वर्ग मोक्ष सिद्ध करने के लिये प्रयत्नपूर्वक समस्त प्रतों के साथ-साथ उपमारहित ऐसा सर्वोत्कृष्ट तपश्चरण करना चाहिये, तथा अंत में सर्वोत्कृष्ट पंडितमरण को सिद्ध कर लेना चाहिये जिससे कि श्रेष्ठ व्रत, उत्तम तप और समस्त पुरुषार्थों को सिद्ध करनेवाला मनुष्य जन्म प्राप्त हो जाय । ॥२८२८।।
चार आराधना की महिमा एवं उसकी प्राप्ति की भावनाविश्चार्या विश्वकन्या शिवसुखजननीधर्मरत्नाविखानो, सेव्यानित्यमुनीन्द्र सकलविधिहराभर्गलाश्वगेहे । सारा सोपाममालाः सुरगृहगमनेसद्गुरणप्रामधात्रो:,
घन्वेशराधनाप्त्येजिनवरपददाराषनादेवता वै ॥२८२६।। इति श्रीमूलाचारप्रदीपकाख्येमहाग्नये भट्टारक श्रीसकलकोतिविरचितेप्रत्याख्यान
संस्तरवर्णनो नाम वशमोऽषिकारः।