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मूलाचार प्रदीप] ( ४२४ )
अधिकार मौनेन वचसः कृत्वामुण्डनहस्तपादयोः । वषुषोरोधनयुक्त्यास्वस्वेच्छाचलनाद्वधः ॥२७६०।। निरुध्यश्रुतपाशेन भ्रमन्तं चित्तमकटम् । पंचेति मुण्डनान्येषकरोति च शिवाप्तये ॥२७६१।।
अर्थ तदनंतर बह क्षपक पांचों इन्द्रिय मन-वचन-काय और शरीर की चंचलता को छोड़कर युक्तिपूर्वक वस प्रकार का मुंजन धारण करता है। पांचों इन्द्रियां अपने अपने विषयों में दौड़ लगाती हैं उनको अपनी शक्तिके अनुसार जीतकर जबर्दस्ती पांचों इन्द्रियोंको मुंडन करता है । इसीप्रकार मौन धारण कर बचन का मुंडन करता है, हाथ पैरों की क्रियाओं को रोक कर हाथ पैरों का मुंडन करता है तथा यह बुद्धिमान अपनी इच्छानुसार चलायमान होनेवाले शरीर को रोक कर शरीर का मुंडन करता है । चारों ओर कूदते हुए इस मनरूपी बंदर को भी श्रुतज्ञान के जाल में बांध कर मनका मुंडन कर लेता है । इसप्रकार मोक्ष प्राप्त करने के लिये वह यति हाथ पर शरीर मन और वचन इन पांचों का नुसन्द करना है ।। २७५:-२५६१५
मुडन के भेदपंचेन्द्रियारिमुण्डास्त्रिमण्डाहस्तांघ्रिकायजाः । मनो वचोद्विमुण्डौचामोमुण्डादशरिणताः ।२७६२१
अर्थ-पांचों इन्द्रियरूपी शत्रुओं का मुंडन, हाथ पैर और शरीर का मुंडन तथा मन और वचन का मुडन इसप्रकार आचार्यों ने दश प्रकार का मुंडन बतलाया है ।।२७६२॥
किमका मुडन व्यर्थ हैअमोभिमुराउने दीक्षासफलामुक्तिदा सताम् । एभिविनाजिलाक्षारणांशिरसोमुण्डनं वथा ।।२७६३॥
___ अर्थ-सज्जन पुरुषों को मोक्ष देनेवाली दीक्षा इन्हीं दश मुडनों से सफल मानी जाती है । इन मुंजनों के बिना इन्द्रियों को न जीतने वाले लोगों के मस्तक का मुंडन करना व्यर्थ ही है ॥२७६३॥
अधिक भूखादि की वेदना होनेपर क्षपक किस प्रकार चितवन करता हैतस्मिनबहपवालानां करणेतीववेचना । क्षधाचं यदि आयेत सवेतिचिन्तयेत्सुधीः ।।२७६४॥ अहो विनाश्वभ्रे साध्याविश्वान्नभक्षणः । अधिनौरंस्तृषा पोडाचानुभुतामयाचिरम् ।।२७६५।। मपात्रारण्यशलादी मगाविपशुजातिषु । मृगतृष्णादिभिः प्राप्ता तीवाक्षसटफुवेदना ।।२७६६।।
श्याचा अपरा धोराः क्षत्तषादिपरोषहाः । भ्रमताभवारण्येनुभूता बुस्सहा मया ॥२७६७॥ सर्वा पुद्गलराशिश्चामाचात्रभक्षिता मया । क्षत्तवाशान्तयेपीतमध्यम्बोरधिकं जलम् ॥२७६८।। तथापि न मनागासीत्तप्सिनाविभक्षणः। किन्तुमित्यंबते तीन अतफुवेरने ॥२७६९।।