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मूलाचार प्रदीप
( ४१२)
[ दशम अधिकार गृध्रपृष्ठ मरण एवं जिघ्रासमरण का स्वरूप-- भत्यु यः क्रियतेहस्तिकलेबराविषुवचित् । प्रविष्य प्रारिणभिप्रपृष्टास्यंमरणरवतत् ।।२६७६।। स्वस्यस्वेनदुराचारः कृत्वा प्राणनिरोषनम् । क्रियतेस्वात्मघातो यो जिघ्नासमरणं हि तत् ।।७७।।
__ अर्थ-हाथी प्राधि पशुओं के कलेवरों में प्रवेश कर जो प्राणी मर जाते हैं उसको गृध्रपृष्ठमरण कहते हैं । जो मनुस्य अपने ही पुराचारों से सांस रोक कर आत्मघात कर लेते हैं उसको जिघ्रासमरण कहते हैं ।।२६७६-२६७७।।
____ व्युत्स्टष्टमरण एवं बलाकामरण का स्वरूपदर्शनशानधारित्रत्रयमुक्रवाशजस्मभिः । विधीयतेमुतिर्यात्रभ्युत्सष्टमरणं च तत् ॥२६७८।। पावस्थेनानपरमाणमोचशिपिलात्मनाम् । दीक्षिसानांदुराधारर्वलाकामरण हि तत् ।।२६७६।।
अर्थ-जो मूर्ख सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्र इन तीनों रत्नत्रयों को छोड़कर मर जाते हैं उसको ग्युत्स्टष्टमरण कहते हैं । शिथिल आचरणों को धारण करनेवाले वीक्षित मुनि अपने दुराधरण के कारण प्राण त्याग करते हैं अयवा पार्श्वस्थ आदि पांच प्रकार के स्याज्य मुनि जो प्राण त्याग कर करते हैं उसको बलाकामरण कहते हैं ॥२६७८-२६७६।।
संमलेश मरण एवं बालबास मरण का स्वरूपबुगशामघाणाचारेणुसक्लेशं विधाय यः। मृत्यस्तपस्विनां चित्तेस क्लिपमरण स तत् ।।२६८०॥ सम्याशानवताचारावृते प्राणविसर्जनम् । मिप्यावृशां हि यद्वालबालात्यमरणं च तत् ।।२६८१॥
अर्थ-अपने हाय में सम्पग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्र में या अपने आचरणों में संक्लेश उत्पन्न कर जो तपस्वियों की मृत्यु होती है उसको संक्लेशमरण कहते हैं । सम्यग्दर्शन, सम्पग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र से रहित मिथ्याष्टियों को जो मृत्यु होती है उसको बालबालमरण कहते हैं ॥२६८०-२६८१॥
बालमरण का स्वरूपशामे सति सदुष्टोस्पेतरवतादिना । शिशोरिवषपुस्त्यागस्तवालमरसायम् ।।२६६२।।
अर्थ-सम्पादृष्टि पुरुष सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान के रहते हुए भी अणुव्रत वा महानतों के बिना बच्चे के समान जो मृत्यु को प्राप्त होते हैं उसको बालमरण कहते हैं ॥२६॥२॥