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मूलाचार प्रदीप
( ४१०)
[ दशम अधिकार और लज्जा को छोड़कर प्राचार्य के समीप समस्त दोषों को यथार्थ रीति से कह देना चाहिये ॥२६६०-२६६१॥
सदनन्तर माचार्य क्षपक को प्रायश्चित देते हैंतदेवागमदृष्टयासीगणी तद्दोषणान्तये । ददातिविधिना सम्म प्रायश्चित्तं यथोचितम् ।।२६६२।।
अर्थ-सथनंतर उन दोषों को शांत करने के लिये वे प्राचार्य भी आगम में कहे अनुसार विधिपूर्वक यथायोग्य प्रायश्चित्त उनके लिये देते हैं ॥२६६२।।
तदनन्तर प्राचार्य एवं क्षपक क्या करते हैंसतः स सपकः शरत्यारलापविशुद्धये । योदत्तः सरिणावपस्तं सर्वमाचारेकमात् ॥२६६३।। समाचार्योमुनेस्तस्पहिसायाह शुभाशुभान् । मत्युमेवान्भुतात्सप्तदशनीचोच्चजन्मदान् ।।२६६४।।
अर्थ--तदनंतर वाह क्षपक भी अपने रत्नत्रय को शुद्ध करने के लिये प्राचार्य के द्वारा लिये हुये समस्त बण्ड को अपनी शक्तिके अनुसार अनुक्रम से पालन करता है । इसके बाद वे आचार्य उन मुनिराज का हित करने के लिये ऊंच और नीच योनि में जन्म देनेवाले और इसीलिये शुभ-अशुभ ऐसे मृत्यु के सत्रह भेदों को शास्त्र के अनुसार कहते हैं ॥२६६३-२६६४॥
जिनेन्द्रदेव उपदिष्ट मरण के १० भेदप्रायोचिस्तयाख्यं चावषिरावतसंगकम् । सशल्पं गज्रपृष्टाख्यं जिघ्रासगर सत्तः ।।२६६५।। व्युत्सष्टं हि वसाकाख्यसक्लिश्यमरण मणाम् । मरणानिदर्शतानि भाषितानि जिनेश्वरैः ।।१६।।
अर्थ-प्रायोचिमरण, भवमरण, अवधिमरण, आघतमरण, सशल्यमरण, गृद्धपृष्ठमरण, जिघ्रासमरण, प्युरस्टष्टमरण, बलाकामरण और संक्लिश्यमरण इसप्रकार ये वश प्रकार के मरण भगवान जिनेन्द्र देव ने बतलाये हैं ॥२६६५-२६६६॥
बालबाल मरणादि मरण के सात भेदमालबालमति लो बालपंडितनामकम् । बलुथं मरणं भरूप्रत्याख्यानाभिधानकम् ।।२६६७।। इंगनीमरणं नाम प्रयोपगमनाभिषम् । मरण सप्तमं सर्वश्येष्टं पण्डितपण्डितम् ॥२६६८।।
अर्थ-बालबालमरण, बालमरण, बालपंडितमरण, भक्तप्रत्याख्यानमरण, गिनीमरण, प्रायोपगमममरण और सर्वोत्तम पंक्तिपंडितमरण इसप्रकार सात मरण ये बतलाये हैं ॥२६६७२६६॥