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मूलाचार प्रदीप]
( ४१३ )
[ दशम अधिकार वालपण्डित मरण का स्वरूपस्थावरध्यसमार्ये सूक्ष्मपंचायपतनः। बालास्त्रसांगिरमाध: स्यूलपंचाधानः ।।२६८३॥ पण्डिताःभावकारचावप्रोग्यन्ते बालपण्डिताः । अणुव्रत मुषां तेषामरणं बालपण्डितम् ।।२६॥
अर्थ-श्रावक लोग स्थावर जीवों को हिंसा सूक्ष्म मिथ्याभाषण प्रादि सूक्ष्मरूप से पांचों पार्यों की प्रवृत्ति करने के कारण बालक कहलाते हैं तथा उस जीवों की रक्षा करते हैं, स्थूल मिथ्याभाषण का त्याग करते हैं, इसप्रकार स्थूल रोति से पांचों पापों का त्याग कर देते हैं, इसलिये वे पंडित कहलाते हैं । इसप्रकार दे श्रावक बालपंडित कहलाते हैं, उन अणुव्रत धारण करनेवाले सम्यग्दृष्टि श्रावकों का जो मरण है उसको बालपंडितमरण कहते हैं ।।२६८३.२६८४॥
भक्त प्रत्याख्यान एवं इंगिनीमरण का स्वरूप - मद्भक्ताहारपानावीस्त्यक्त्वा स्वस्यप्रतिभया ! प्राणोन्भनं च सा भक्तप्रत्यास्यानाहयाभूतिः ।।८५॥ पाएमनोगिताकारेणाभिप्रायेण्योगिभिः । साध्वते मरणं यातदिगिरणीमरणं हि तत् ।।२६८६।।
अर्थ-जो मुनि प्रतिज्ञापूर्वक चारों प्रकार के श्राहार का त्याग कर प्रारण त्याग करता है उसको भक्तप्रत्याख्यान नामका मरण कहते हैं । जो योगी अपने आत्मा के इशारे से प्रात्मा के अभिप्राय के अनुसार अपने मरण को सिद्ध कर लेते हैं उसको इंगिनीमरण कहते हैं ।।२६८५-२६८६।।
प्रायोपममल मरण का स्वरूप
प्रायेगोपगमं कृत्वा जना स्थानानान्तरे । पापा काकिनाषीरयमिनायल्वभाव्यते ॥२६८७॥ मरणस्वमपुःभिपवा हकस्मिन्नचलासने । कस्मिरिचन्मरणं तस्मात्प्रायोपगमनाह्वयम् ॥१८॥
अर्थ-जो धीर वीर एकाको मुनि पापरूप मनुष्यों के स्थान को छोड़कर प्राय: निर्जन वनमें चले जाते हैं और अपने शरीर को किसी एक ही निश्चल आसन से विराजमान कर उस शरीर का त्याग कर देते हैं उसको प्रायोपगमन मरण कहते हैं । ॥२६८७२६८॥
पण्डित मरण के भेद एवं उसके स्वामी कौन ? भक्तोम्झनादिनामामोमस्यूमेवास्नयोध्यमी । शेया पण्डितमृत्योरचप्रमत्तादिमहात्मनाम् ||२६५६॥
अर्थ-भक्तप्रत्याख्यानमरण, इंगिलीमरण और प्रायोपनमन मरण ये तीनों मरण पंजितमरण के मेव हैं और प्रमससंयमो का अप्रमत्तसंयमियों के होते हैं ।२६८६॥