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मूलाचार प्रदीप ]
( ४१४ )
[दशम अधिकार पण्डित पण्डित मरण का स्वरूपस्यवस्था केवलिना प्रारणानगमनपछिवालये। मरगतम्जगजन्मेण्ट व पण्डितपण्डितम् ।।२६६०।।
अर्थ-केवली भगवान जो अपने शरीर को छोड़कर मोक्ष के लिये गमन करते हैं, वह तीनों लोकों में उत्तम और बंदनीय पंडित पंडितमरण कहलाता है । ॥२६६०॥
सैकड़ों जन्म को नष्ट करनेवाले पण्डित मरण की प्रेरणाअमीषा भरणा मध्य यमांसाहसम् । भरणं क्षपक त्वं सत्साधयात्रातियत्नतः ।।२६६१।। साधितं मरणं ह्ये कंपण्डिताख्यप्रयत्नतः । बहजन्मशतावनिक्षपकारण छिनस्यहो ॥२६६२।।
अर्थ-हे क्षपक 1 इन सब मरणों में जो पंडितमरण है उसी को तू प्रयत्नपूर्वक सिद्ध कर । यदि यह एक पंडितमरण ही प्रयत्नपूर्वक सिद्ध कर लिया जायगा तो उससे उस क्षपक के अनेक संफड़ों जन्म-मरण क्षणभर में नष्ट हो जायेंगे ।।२६६१२६६२॥
कैसे मरण युक्त मरण करना चाहिये ? प्रतःसम्मररमेनात्र मर्तब्य सेन धोधनः । येनोपत्तिः पुन न स्याजन्ममृत्युभराविधा ।।२६६३॥
अर्थ-अतएव बुद्धिमानों को श्रेष्ठ मरण से ही मरना चाहिये जिससे कि जन्म-मरण और बुढ़ापे को उत्पन्न करनेवाला जन्म फिर कभी न हो ॥२६६३॥
कैसे जीव समाधिमरण रहित मरण करते हैंये प्रगष्टमतिज्ञानाश्चतु:समाविउंविताः। कौटिल्यपरिणामाश्चमोहारिसिताःराठाः ॥२६६४।। करायाकुलचेतस्काः सनिदानाद गुस्मिताः । प्रातरौद्रविदुर्लेश्याः शुभध्यानातिगा नरा: ॥२६६५।। असमाधिहदा बलेशननियन्से समाधिमा । पाराध गते प्रोक्तामृतौ ससृतिय नात् ।।२६६६।।
अर्थ-जिन जीवों का भतिज्ञान नष्ट हो गया है, जो आहार, भय, मथुन, परिग्रह इन चारों संज्ञानोसे विडंवित हैं, जिनके परिणाम कुटिल रहते हैं, जो मोहरूपी शत्रु से दबे हुये हैं, जो मूर्ख हैं, जिनके हवय कषाय से आकुलित रहते हैं, जो सवा निदान करते रहते हैं, जो सम्यग्दर्शन से रहित हैं, जो प्रातध्यान तथा रौद्रध्यानमें लीन रहते हैं, पहिली तीन मशुभलेश्याओं को धारण करते हैं, जो शुभध्यान से बहुत दूर रहते हैं और जिनके हरूप में सभी मो समाधि को स्पाम नहीं मिलता ऐसे लोग बिना समाधिमरण के केवल गलेशपूर्वक ही मरते हैं । इसलिये आराधना करनेवालों को मरण