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मूलाचार प्रदीप ]
[ दशम अधिकार शुद्ध है, जो शुक्ललेश्या धारण करते हैं, शुभध्यान में सदा लीन रहते हैं और सिद्धांतशास्त्रों को जानते हैं, ऐसे जो मुनि समाधि पूर्वक धर्मध्यान वा शुक्लध्यान धारण कर सन्यास से मरण करते हैं उन आसन्न भव्य जीवों के उत्तम रत्नत्रय की प्राप्ति अत्यन्त सुलभ रीति से हो जाती है ॥२७१५-२७१६॥
कैसे जीव अनन्त संसार में भ्रमण करते हैंगुरूणांप्रत्यनीका ये दीर्घमिथ्यात्ववासिलाः । महमोहातादृष्टा प्रातरौद्रपरायणाः ।।२७१७।। मदोद्धताः कुगीलाश्चम्यन्तेऽत्रासमाधिमा । स्युस्तानन्तसंसारा विश्वदुःखशताकुलाः ।।२७१८।।
अर्थ-जो जीव प्राचार्य वा गुरु से सदा प्रतिकुल रहते हैं, जो दीर्घमिथ्यात्व को धारण करते हैं, जो तीन मोह से घिरे हुए हैं, जो दुष्ट हैं, आतरौद्र परिणामों को धारण करते हैं, मद से मवोन्मत्त हैं, जो कुशीली हैं, ऐसे जीव बिना समाधि के मर कर अनंत संसार में परिभ्रमण किया करते हैं और सब तरह के सैकड़ों महा दुःखों से घ्याकुल रहते हैं ॥२७१७-२७१८।।
कैसे जीब संसार से शीघ्र पार हो जाते हैंजिनवाचनुरक्ता ये गुरूपा भक्तितत्पराः। शुद्धभावाः सदाचारा रत्नत्रर्यायमूषिताः ।।२७१६॥ गुर्वाशापालकुदिक्षा घमण्यानसमाधिना । उसमं मरणं यान्ति स्पुस्ते संसारपारगाः ॥२७२०॥
अर्थ-जो जीव जिनवाणी में सदा अनुरक्त रहते हैं, गुरुओं की भक्ति करने में तत्पर रहते हैं, शुद्ध भावों को धारण करते हैं, समाचार पालन करते हैं, रत्नत्रय से सुशोभित हैं, गुरु की आज्ञा को सदा पालन करते रहते हैं और जो चतुर हैं, ऐसे जीव धर्मध्यान और समाधि पूर्वक उसम मरण को प्राप्त होते हैं और शीघ्र ही संसार से पार हो जाते हैं ॥२७१६-२७२०॥
दुर्मरण से मरने का फलबालवालाशुभानमत्युन्मरिष्यन्तिचाहूंश्च ते । जिनवाण्यं न जानन्ति बराका येऽशवंचिता। ॥२१॥ स्वान्यशस्त्राविधानविषाविभक्षणेन च । जलानलप्रवेशाम्यामनाचाराविकोटिभिः ।।२७२२॥ उच्छ्वासरोधनाचं दुमृतिस्वस्यकुर्वते । जन्ममृत्युभरादुःखौघस्तेषां वर्ड तेतराम् ॥२७२३।।
अर्थ-जी जीव अनेक बार अत्यन्त अशुभ ऐसे बालबालमरण से मरते हैं, जो ज़िनवचनों को मानते ही नहीं, जो नीच हैं, पाप से ठगे हुए हैं, जो अपने ही शस्त्र से या दूसरे के शस्त्र धातसे मरते हैं या विषभक्षण से मरते हैं, जलमें डूबकर वा अग्नि