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मूलाचार प्रदीप ]
( ३५७ )
ग्रन्थ सुनने मात्र का फल -
सेनमेन भखा महापापकलंकिताः । श्रग्निनाकन काली वयुद्ध पन्तिभद्ध या मृशम् ।।२३२३ ।।
[ अष्ठम अधिकार
अर्थ- जिराकार लिये सोना शुद्ध हो जाता है उसीप्रकार श्रद्धा पूर्वक इस ग्रन्थ के सुनने मात्र से महा पाप से कलंकित हुए समस्त भव्य जीव शुद्ध हो जाते हैं ।
।।२३२३॥
भावनाओं के प्राचरण का फल ---
यावर योगेन हत्याकर्मकवम्बकम् । यातिघोराह्निनिर्वाणतस्य कावर्णनापरा ।।२३२४ ॥ अर्थ --- जिन भावनाओं के आचरण करने से धीर वीर मुनि अपने समस्त कर्मों के समूहको नाश कर मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं उन भावनाओं की प्रशंसा भला क्या करनी चाहिये ।। २३२४ ॥
दश प्रकार की शुद्धि के नाम निर्देश
fare शुद्धीवसतिकाशुद्धिरूजिता । विहारशुद्धिसंज्ञाथभिक्षाज्ञानसमाह्वये ।।२३२५ ।। शुद्धिज्मनाम्नी वाक्तपः ध्यानाख्यशुद्धयः । इमा दर्शविषाः प्रोक्ताः शुद्धयोव महात्मनाम् ।। अर्थ - लिंगशुद्धि, श्रेष्ठव्रत शुद्धि, वसतिकाशुद्धि, उत्तमविहारशुद्धि, भिक्षाशुद्ध, ज्ञानशुद्धि, उज्झनशुद्धि, वचनशुद्धि, तपशुद्धि और ध्यानशुद्धि । इसप्रकार मुनियों के लिये ये दस शुद्धियां कही गई हैं ।।२३२५-२३२६॥
लिंग शुद्धि का स्वरूपविरसावृश्यं जीवितं धनयौवनम् । स्वजनाविकमन्यद्वा जाश्वाहत्वा जगद्विषम् ।।२३२७।। तयुगसंमोहनात्मज्ञेद्वायतेमुदा । विशुद्ध जिनलिंग सा गिशुद्धिः सुयोगिनाम् ||२३२८ ।।
अर्थ - यह धन, जीवन, यौवन, कुटुम्बो लोग तथा और भी यह समस्त संसार बिजली की चमक के समान क्षणभंगुर है यही समझकर और इस जयतरूपी शत्रुको मारकर जो आत्माको जाननेवाले धीर वीर पुरुष प्रसन्न होकर उस धन यौवन आदि से मोह का त्याग कर देते हैं और विशुद्ध जिनलिंग धारण कर लेते हैं वह मुनियों की लिंगशुद्धि कहलाती है ।।२३२७-२३२८।।
जिनसिंग शुद्धि का स्वामी कौन होता है
प्रस्वेदलग्नसर्वागमला कर्ममलातिगाः । सीमशीतोष्णतापाविदग्धक्षोपमाविदः ।।२३२६ ।। निर्विण्णाः कामभोगावौ वपुःसहकारदूरगाः । विगम्बरधरा धीराः कृत्स्नसंगप राम्मुखाः ||२३३० ॥