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मूलाचार प्रदीप ]
( ३५६ )
व्रतशुद्धि का स्वरूप -
प्रवचनापाभिर्मातृभियंसि मातृभिः । त्रिशुद्धया सार्द्धं मावाथमहाव्रतानि पंच च ।। २३३८ || यरम प्रतिपात्यते यत्रागातिर्गषुः । श्रप्रमत्तः सवामुक्त्यैवसद्धिः स्मृता ।।२३३६ ।।
[ श्रम अधिकार
अर्थ-रागन ेष रहित प्रमाद रहित जो बुद्धिमान् मुनि मोक्ष प्राप्त करने के लिये मन-वचन-कायको शुद्धता पूर्वक मुनियों की माताके समान अष्ट प्रवचन मातृकाओं के साथ-साथ ( पांच समिति और तीन गुप्तियों के साथ-साथ ) पंच महाव्रतों को धारण करते हैं और फिर उनका पालन करते हैं उनके ही व्रतशुद्धि आचायों ने
बतलाई है ।। २३३८- २३३६।।
शुद्धि का स्वामी कौन होता है
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समस्तग्रंथनिर्मुक्तास्त्रिरत्नप्रन्यभूषिताः । त्यक्तदेहप्रतीकाशः सर्वारम्भविवजिताः ||२३४० ॥ मौनव्रतधराः सत्यधर्म सूचनतत्पराः । अदत्तं तृणमात्रं न गृह्णन्ति शीलमंडिता: ।। २३४१ ।। बालकोटमा श्रामण्यायोग्यं परिग्रहम् । स्वप्नेपि जातुनेच्छन्ति सन्तोबिरगोदिगम्बराः ॥ ४२ ॥ कामे वा तत्प्रतीकारे ममतां जातु कुर्वते । न निस्पृहा य यथाजातरूपालंकृत विग्रहाः ।। २३४३ ।। यत्रारम्येश्मशाने या रविरस्तं प्रयातिभोः । तत्रैवाप्रतिवद्धास्ते वसन्तियत शुद्धये ।।२३४४ ॥ इत्यार्थ निर्मलाचार निर्मलावितान थे। चरन्ति सर्वथा तेषां व्रतशुद्धिर्मतागमे ।। २३४५ ।।
अर्थ - जो मुनि समस्त परिग्रहों से रहित हैं, किन्तु रत्नत्रय रूपी परिग्रह से सुशोभित हैं, जो अपने शरीर का प्रतिकार कभी नहीं करते, जो समस्त आरम्भों से रहित हैं, सदा मौनव्रत धारण करते हैं, जो सत्यधर्मका उपदेश देने में सदा तत्पर रहते हैं जो बिना दिया हुआ तृणमात्र भी कभी ग्रहण नहीं करते और जो शोलों से सदा सुशोभित रहते हैं जो मुनियों के प्रयोग्य बाल के अग्रभाग के करोड़ों भाग के समान परिग्रह को धारण करने को स्वप्न में भी कभी इच्छा नहीं करते, जो अत्यन्त संतोषी हैं दिगम्बर अवस्था को धारण करते हैं जो अपना निस्पृहत्व गुण धारण करने के लिये शरीर में वा शरीर की स्थिरता के कारणों में कभी भी मोह वा ममता नहीं करते और जो उत्पन्न हुए बालक के समान निधिकार दिगम्बर शरीर को धारण करते हैं । जो मुनि अपने व्रतों को शुद्ध रखने के लिये जिस बनमें वा जिस श्मशान में सूर्य अस्त हो जाता है वहीं पर बिना किसी के रोके निवास कर लेते हैं । इसप्रकार जो सर्वया निर्मल आचरणों को पालन कर अपने व्रतोंको निर्मल रीतिसे पालन करते हैं उनके ही जैन शास्त्रों में व्रतशुद्धि बतलाई है ।। २३४०-२३४५ ।।