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मुलावार प्रदीप ]
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[ अष्ठम अधिकार ध्यान शुद्धि का स्वरूप-- निर्विकल्पं मनः कृत्वा त्यक्त्वार्तरोनमंजसा । स्थित्वागिरिगुहादीसलपानमेकाप्रचेतसा ॥२४६३।। धर्मशुक्माभिधं वक्षः सिद्धमे यद्विधीयते । कर्मारण्ये ज्वलवालाध्यानद्धिरिहास्ति सा ॥६४॥
अर्थ-जो चतुर मुनि अपने मनके समस्त संकल्प विकल्पों को दूर कर तथा मार्तध्यान और रौद्रभ्याम की मांग कर पर्वतो की गुफा आदि में बैठकर एकाग्रचित्त से धर्मध्यान वा शुक्लध्यान को धारण करते हैं तथा इन दोनों ध्यानों को मोक्ष के हो लिये धारण करते हैं, उनके कर्मरूपी वन को जलाने के लिये की ज्याला के समान ध्यानशुद्धि कही जाती है ॥२४६३-२४६४॥
बुद्धिमान लोग मनरूपी हाथी को किससे वश करते हैंभ्रमतिविषयारण्ये दुद्ध र स्वमनोगजम् । ध्यानाकुशेनचाहत्यानयन्ति स्वशं बुधाः ॥२४६५।।
अर्थ-यह अपना मनरूपी दुर्धर हाथी विषयरूपी वनमें घूमता रहता है। इसको ध्यानरूपी अंकुश से पकड़ कर बुद्धिमान लोग ही अपने वश में कर लेते हैं । ॥२४६५।।
योगोजन इन्द्रिय और कषाय रूपी सेना को किसके द्वारा जीतते हैंचंचलान् कुर्वतः कोड पंचेन्नियजलोद्भवान् । रत्यब्धौ ध्यानमालेनवघ्नन्तिथ्यानिनोवृतम् ।।६६।। कषायतस्करानीकं मनोभूपेन्द्रपालितम् । विश्वसन्तापिनं ध्वन्तिघ्यानखड्गेनयोगिनः ॥२४६७।।
अर्थ-पंचेन्द्रियरूपी जलसे उत्पन्न हुई और रति रूप समुद्र में कोड़ा करती हुई चंचल मछलियों को ध्यानी पुरुष ही ध्यानरूपी जालमें शीर बांध लेते हैं । मनरूपी उत्कृष्ट राजा के द्वारा पाली हुई और समस्त जीवों को दुःख देनेवाली ऐसी इस कषायरूपी चोरों की सेना को योगी पुरुष ही ध्यानरूपी तलवार से मारते हैं ॥२४६६२४६७॥
योगीजन ध्यान के द्वारा क्या-क्या करते हैंध्यानेन निखिलानयोगानमूलोत्सरगुणानपरान् । शमेन्द्रियषमादीश्व नन्ति पूर्णता विवः ॥६॥
अर्थ-चतुर पुरुष इस ध्यान के हो द्वारा समस्त योगों को, उत्कृष्ट मूलगुण तथा उत्तरगुणों को उपशम परिणामों को और इन्द्रियों के दमन को कमरूप से धारण कर लेते हैं ॥२४६८॥