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मूलाधार प्रदीप]
[अष्ठम अधिकार अर्थ-थे मुनिराज परमात्मा से उत्पन्न हुए ध्यानरूपी आनंशमृत को सदा पोते रहते हैं, इसलिये वे क्षुधातृषा आदि की परीषहों को मुख्यवृत्ति से कभी नहीं जानते ॥२४७४॥
श्रेष्ठ ध्यानरूपी नगर एवं उसके स्वामी का वर्णन--- जिनशासनभूमिस्यं चारित्नशीलवेष्ठितम् । विवेकगोपुराकोणजिन ज्ञासातिका घृतम् ।।२४७५।। गुप्तिवधकपाटसत्तपः सुभटपूरितम् । क्षमादिमंत्रिवर्गाढय सदशानतलरक्षकम् ।।२४७६।। सयमारामसीमान्तं ह्यगम्यं भगवजितम् । कषायमदनारातियजः पचानतस्करः ।।२४७७।। साधुलोक भृतरम्यंसध्याननगरंपरम् । अधिष्ठितामहाशीलसन्नाहाखिलचमिताः ।।२४७८।। समतुगगजाहदा धैर्यचापकरांकिताः । रत्नत्रयशरोपेलाःमुनीन्द्रमुभटोत्तमाः ।।२४७६।।
अर्थ-देखो यह श्रेष्ठध्यान एक उत्कृष्ट नगर है, यह नगर जिनशासन की भूमि पर बसा हुआ है, चारित्ररूपी परकोट से घिरा हुआ है, विवेकरूपी बड़े दरवाजों से सुशोभित है, भगवान जिनेन्द्र देव की प्राज्ञारूपी खाई से वेष्ठित है, इसके गुप्तिरूपी वनमय किवाड़ हैं, श्रेष्ठ तपश्चरणरूपी योद्धामों से यह भर रहा है, उत्तम क्षमा आदि मंत्रियों के समूह से यह सुशोभित है, सम्यग्ज्ञानरूपी कोतवाल इसकी रक्षा करते हैं, इसको सीमा के अंतमें संयमरूपी बगीचे लग रहे हैं, कषाय और कामरूपी शत्रुनों के समूह तथा पंचेन्द्रियरूपी चोर इसमें प्रवेश नहीं कर सकते, न इस नगर का भंग कभी हो सकता है, यह ध्यानरूपी नगर साधु लोगों से भरा हुआ है और परम मनोहर है, इस नगर के स्वामी वे ही मुनि होते हैं जो महाशीलरूपी उत्तम कवचों को सदा पहने रहते हैं जो समतारूपी ऊंचे हाथी पर चढ़े रहते हैं, जिनके हाथ में घर्षरूपी धनुष सा सुशोभित रहता है तथा जो रस्नत्रयरूपी वाणों को धारण करते रहते हैं, ऐसे उत्तम सुभट रूपी मुनिराज इस श्रेष्ठध्यानरूपी नगर के राजा होते हैं ॥२४७५-२४७६।।
दे ध्यान रूपी नगरी के स्वामी मोहरूपी शत्रुको जीतकर मोम साम्राज्य को प्राप्त करते हैं... निःशंकगुरामाकृष्यवृगाविशरवर्षणः । मोक्षराज्याय निम्नन्तिमसम्यं मोहविविषम् ॥२४०।। ततोहतमहामोहानिबूतकर्मशात्रवाः । अस्ति मुक्तिसाम्राज्यं शाश्वतं ते सुराचिताः ।।२४८१॥
अर्थ-वे ध्यानरूपी नगर के स्वामी मुनिराज निःशंकितरूपी डोरी को खींच कर रत्नत्रयरूपी वाखों की वर्षा करते हैं और मोक्षरूपी राज्यको प्राप्त करने के लिये समस्त सेना के साथ मोहरूपो शत्रु को मार डालते हैं। तदनंतर मोहरूपी महाशत्रु के मर जानेपर उन मुनियों के कर्मरूपी सब शत्र नष्ट हो जाते है और देवों के द्वारा पूज्य