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मूलाचार प्रदीप]
नवम अधिकार है, विशुद्धियों को उत्पन्न करनेवाला है, पापरूप शत्रुको नाश करनेवाला है, स्वर्ग मोक्ष का एक अद्वितीय कारण है, अत्यन्त निर्मल है, संसार के संताप को नाश करनेवाला है, भगवान जिनेन्द्र देव का कहा हुआ है और श्रेष्ठ मुनियों के द्वारा सदा सेवन धारण करने योग्य है । अतएव चतुर मुनियो को मोक्ष प्राप्त करने के लिये प्रयत्नपूर्वक इस परमसमयसार को अच्छी तरह पालन करते रहना चाहिये ॥२६४१॥
अरहतादि की भक्ति का फल श्रेष्ठ गुणों की प्राप्ति की अभिलाषा -- नामेयाथाजिनेन्द्रास्त्रिभवनजिताः धम् चकाधिपा, ये सिमालोकाग्रताहतावधिवपुषोत्रान्तहीनाः प्रसिद्धाः । प्राचार्याःपाटका ये गुणगरणसदनाः सामवोमुक्तिकामाः
प्राचारांगागमशाममनिजसुगुणानसंस्तुतास्तेप्रवचः ॥२६४२।। इति श्रीमूसाचारप्रदीपकास्येमहाप्रथेमवारकोसकलकोतिविरचिते
समयसार वर्णनो नाम नषयोषिकारः।। अर्थ- इस संसार में जो धर्मचक्र के स्वामी और तीनों लोकों के द्वारा पूज्य ऐसे वृषभदेव प्रादि चौबीस तीर्थकर हुए हैं तथा लोक शिखर पर विराजमान, समस्त कर्म और शरीर से रहित, संसार के परिभ्रमण से रहित और सर्वत्र प्रसिद्ध ऐसे अनंत सिद्ध परमेष्ठि विराजमान हैं और प्राचारांग आदि समस्त भागम के जानकार मोक्षको इच्छा करनेवाले और अनेक गुणों के समूह के स्थान ऐसे प्राचार्य उपाध्याय और सर्व साधु विद्यमान हैं, इसप्रकार के पांचों परमेष्ठियों की मैं स्तुति करता हूं, इसके बदले में वे पांचों परमेष्ठि मुझे अपने-अपने श्रेष्ठ गुण प्रदान करें ।।२६४२।। इसप्रकार आचार्य श्री सकलकीति विरचित मूलाचार प्रदीप नामके महाग्रन्थ में समयसार
को वर्णन करनेवाला यह नौवां अधिकार समाप्त हुमा ।