________________
है
मूलाचार प्रदीप ]
( ३७४)
[अष्ठम अधिकार अप्रमत्तमहायोगवतगुप्त्याविमंडितैः । क्रियते कानपूर्व यत्सा तपः शविरुद्ध ता ।।२४४६।।
अर्थ-महायोग व्रत और गुप्ति समिति आदि से सुशोभित रहनेवाले और प्रमाद रहित जो मुनि अपनी शक्तिके अनुसार अशुभ कर्मरूप शत्रुओं की संतान को भी जड़मूल से उखाड़ देनेवाले तथा मोक्ष के कारण, भगवान जिनेन्द्रदेव के कहे हुए और सारभूत ऐसे बारह प्रकार के तपश्चरण को ज्ञानपूर्वक धारण करते हैं उसको उत्तम तप शुद्धि कहते है ॥२४४५-२४४६।।
__वे मुनिराज अनेक उपवास धारण कर तप करते हैं-- तपोग्निशष्ककर्मणांप्राचुर्भूतास्थिसंचयाः । साविका निकषायास्ते शोरणगानाधतेलात् ।।४।। बहन षष्ठाष्टमावींश्च पक्षमासादिगोचरान् । उपवासाश्चरम्यवनिःशक्ता अपि मुक्तये ॥२४४८।।
अर्थ----तपरूपी अग्निसे जिनके कर्म सब सूख गये हैं, जिनके शरीर में हड़ीमात्र रह गई है जो कषाय रहित हैं तथापि जो शक्तिशाली हैं, ऐसे शरीर से अशक्त मुनि भी केवल मोक्ष प्राप्त करने के लिये अपने धैर्यके बलसे वेला, तेला, पंद्रह दिन का उपवास, एक महीने का उपवास, वो महीने का उपवास इसप्रकार अनेक उपवासों को धारण करते हैं ।।२४४७-२४४८।।
बे मुनिराज तपशुद्धि के लिये उनोदर एवं वृति-संख्यान तप करते हैंपक्षमासोपवासादि पारणाहनिनिस्पृहाः। प्रासमात्रादिकाहारं भुजन्ति शिवशर्मणे ॥२४४६।। कृत्वामासोपवासावीन्पारणे वस्वरादिभिः । गृह्वात्यवग्रहं पोराभिमालाभाय दुर्घटम् ।।२४५०।।
अर्थ-वे निस्पृह मुनिराज मोक्ष सुख प्राप्त करने के लिये पंद्रह दिन का वा एक महीने का अथवा और भी अधिक उपवास करके पारणा के दिन एक ग्रास वा दो ग्रास पाहार लेकर ही चले जाते हैं । वे धीर वीर मुनि मासोपवास आवि करके भी पारणा के भिक्षा लेने के लिये "अाज चौराहे पर आहार मिलेगा तो लंगा नहीं तो महीं" अथवा "पहले घरमें आहार मिलेगा तो लगा नहीं तो नहीं" इसप्रकार पड़गाहन को प्रतिज्ञा कर वृत्तिपरिसंख्यान तप धारण करते हैं ॥२४४६-२४५०॥
वे मुनिराज रस परित्याग एवं विविक्त शय्यासन तप करते हैंस्यास्वापंपरसान षड्या धौतान्नमुष्पवारिणा । पंचामसुखहान्य ते भजन्ति पारणे भुवा ।२४५१॥ भीमारण्ये श्मशाने वा मांसाशिफू रसंकुले । स्याविठूरे भयातीताः अयन्तिशयमासमम् ॥२४५२।।
अर्थ-अथवा वे मुनिराज पांचों इन्द्रियों के सुख नष्ट करने के लिये पारणा