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मूलाचार प्रदीप ]
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[ अष्ठम अधिकार
और जो सर्वत्र विहार करते हैं कहीं किसी से रोके नहीं जा सकते ऐसे मुनि प्रतिदिन भगवान महावीर स्वामी के वचनों में क्रीड़ा करते हुए भयानक गुफाओं में वा कंदराओं में ही निवास करते हैं । ये महा पुरुषरूपी सिंह मुनिराज प्रपने ध्यानकी सिद्धिके लिये सिंह, बाघ, सर्प और चोर आदि के द्वारा पुरुष वा भयभीत मनुष्यों को अत्यन्त भय उत्पन्न करनेवाले श्मशान कंदरा श्रादि प्रदेशों में धीर वीर महापुरुषों के द्वारा सेवन की हुई वसतिका को ही सदा सेवन करते हैं अर्थात् सदा ऐमी हो बसलिका में ठहरते हैं । प्रत्यन्त निर्भय और नरसिंह वृद्धि को धारण करनेकाले वे महा मुनिराज रात्रि में पहाड़ों की गुफा प्रादि अत्यन्त एकान्त स्थान में रहते हुए तथा सिंह, बाघ प्रादि अत्यंत दुष्ट जीवों के भयानक और भीषरण शब्दों को प्रत्यन्त समीप ही सुनते हुए भी अपने ध्यान से रंचमात्र भी चलायमान नहीं होते हैं, पर्वत के समान वे निश्चल ही बने रहते हैं । करोड़ों महा उपद्रव होनेपर भी जो अपने मनमें कभी चंचलता धारण नहीं करते ऐसे चतुर मुनिराज भगवान जिनेन्द्रदेवकी आज्ञा पर अटल श्रद्धान रखते हुए पर्वतों की गुफाओं में ही निवास करते हैं। सदा ध्यान और अध्ययन में लगे रहनेवाले तथा रात दिन जगने वाले और प्रभाव रहित जितेन्द्रिय वे मुनिराज निद्रा के वश में कभी नहीं होते । वे मुनिराज पहाड़ों पर ही पर्यकासन, अर्धपर्धकासन वा उत्कृष्ट वीरासन धारण कर वा हाथी की सूंडके समान प्रासन लगाकर प्रथवा मगर के मुखकासा ग्रासन लगा कर अथवा कायोत्सर्ग धारण कर वा अन्य किसी आसन से बैठकर प्रथवा एक कवंट से लेटकर अथवा अन्य कठिन श्रासनों को धारण कर पूर्ण रात्रि बिता देते हैं। वसतिका शुद्धि को धारण करनेवाले, वस्त्रवृषभनाराच संहनन को धारण करनेवाले और मोक्षमार्ग में निवास करनेवाले वे मुनिराज अपने श्रेष्ठ ध्यानकी सिद्धि के लिये संकड़ों उपसर्ग आ जानेपर, अग्नि लग जानेपर तथा महा परीषहों के समूह आ जानेपर भी भयानक जीवों से भरे हुए भयंकर और प्रत्यंत घोर दुष्कर वनमें हो निवास करते हैं । इसप्रकार जो बीतराग मुनि अत्यन्त शुद्ध और ऊपर कहे अनुसार विषम वसतिका का आश्रय लेते हैं उन्हीं के वसतिका शुद्ध होती है ।।२३४८-२३६२।।
उत्तम विहार शुद्धि का स्वरूप
उदयेस तिसूर्यस्या के पय्यन्नस्तमे । धर्मप्रवृतयेलोकेगमनंयद्विषयते ।। २३६३॥ महोतले मुनीन्द्रः सरस्वच्छंदबिहारिभिः । युगान्तरेअपाभ्यां सा विहारेशुद्धिरुत्तमा ।२३६४ ।।
अर्थ- स्वतंत्र बिहार करनेवाले एक विहारी मुनिराज सूर्य उदय होने के बाद