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मूलाचार प्रदीप]
( ३१२)
[पष्ठम अधिकार २०२२-२०२३॥
बादपार के भेदः - हिसानन्मृषानन्दस्तेयानन्दसमाह्वयम् । विषयायतसंरक्षणानन्वंतच्चतुर्विधम् ॥२०२४।।
अर्थ-हिसानंद, मृषानंद, स्तेयानंद और विषय संरक्षणानंद के भेद से इस रौद्रध्यान के भी चार भेद हैं ॥२०२४॥
रौद्रध्यान का स्वरूपहिसायो परपीबायां संरम्भाचं कापनः। संकल्पकरणंयता बाधितेष्वांगिराशिषु ॥२०२५॥ कालोहर्षरचसंग्रामे जयाजयादिचिन्तनम् । तद् धियां समस्तं च हिंसामन्वं प्ररूपितम् ।।२०२६।।
अर्थ-हिंसा में प्रानंद मानना, दूसरे की पीड़ा में आनंद मानना, जीवों के छिन्न-भिन्न करने का संकल्प करना, अथवा किसी ऐसे काम का संकल्प करना जिसमें जीवधात होता हो, अथवा जीवोंकी राशिके घात होनेपर मानंद मानना, कलहमें आनंद मानना, युद्ध में जीत हार का चितवन करना आदि रूपसे जो बुर्बुद्धियों के ध्यान होता है उसको हिसानंद नामका ध्यान कहते हैं ।।२०२५-२०२६॥
मृषानन्द रौद्रध्यान का स्वरूपशिकल्पनायुषायापरवंचनहेतवे । व पलेयन्मषामादपरवंचनपंडितः ।।२०२७।। भूषावावेऽथवा प्रोक्त केनचित्कटकाक्षरंः । हृवानुमननंयत्तामषानन्वकिलाखिलम् ॥२०२८।।
अर्थ-दूसरों को ठगने में प्रत्यंत चतुर पुरुष दूसरों को ठगने के लिये अपनी दुर्बुद्धि की कल्पना और युक्ति से जो मिथ्या वचन बोलते हैं अथवा कोई अन्य पुरुष कड़वे शब्दों से मिच्या मनन कहते हैं उसमें जो हृषयसे अनुमोदना करते हैं उस सबको भृषानंद नामका रौद्रध्यान कहते हैं ।२०२७-२०२८।।
स्तेयानन्द रौद्रध्यान का स्वरूपपरी। स्वीसुबस्त्वाविहरणे सोभिमिशम् । संकल्पः क्रियते पिसे गोयुभोपात्रतस्करः ।।२।। मौतेसलिएरण्ये धमेवथामुमोदनम् । रौरवानं च तस्सवस्तयानन्दमघप्रवम् ।।२०३०॥
अर्थ-जो लोभी वा चोर दूसरों को लक्ष्मी, स्त्री वा अच्छी वस्तुओं के हरण करने के लिये अपने घिस में अशुभ संकल्प करते हैं अथवा कोई बहुत सा द्रव्य मार लाथा हो उसकी अनुमोक्ना करते हैं उस सबको पाप उत्पन्न करनेवाला स्तेयानंड नाम का रौद्रध्यान कहते हैं ॥२०२६-२०३०॥