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मूलाधार प्रदीप
( १३४ )
{अधिकार
अर्थ- चतुर मुनि किसी आचार्य प्रादि से पुस्तकादि के ग्रहण करते समय, विनय करते समय, वंदना आदि करते समय, प्रथवा जैन शास्त्रों में कहे हुए पदार्थों के स्वरूपको पूछते समय अथवा और भी किसी शुभ कार्यों के करले समय समस्त भव्य जीवों का हित करनेवाले वृषभसेन आदि गणधरों की वा प्राचार्य आदि की इच्छानुसार अपनी प्रवृत्ति करना अथवा उस उपकरण के स्वामी को इच्छानुसार उस उपकरण को सेना छंदन नामका समाचार कहलाता है ।।२१७८-२१७६ ।।
निमंत्रण नामक समाचार का स्वरूप
गुरुसाधकान्येषां पुस्तकाविपरिग्रहम् । धर्मोपकरणं वान्यविच्छन् गृहीतुमात्मवान् ।।२१६० ।। तदाम विनयेनेत्य तेषां नत्या पदाम्बुजान् । कुर्यानिमंत्ररपयोगी याचना कार्यसिद्धये ।।२१८१ ।।
अर्थ - यदि किसी साधु को अपने गुरु से वा अन्य साधनों मुनियों से कोई पुस्तक वा कोई धर्मापकरण लेने की इच्छा हो तो लेते समय उस साधुको उन गुरु वा अन्य साधम साधुओं के समीप विनयपूर्वक जाना चाहिये उनके चरण कमलों को नमस्कार करना चाहिये और फिर अपने कार्य की सिद्धि के लिये उनसे याचना करनी चाहिये इसको निमंत्रण नामका समाचार कहते हैं ।।२१८०-२१८१ ।।
उपसम्पत् समाचार के भेद
उपसम्पज्जिनेः प्रोक्ता पंचधा विनयेसताम् । क्षेत्रेमार्गे तथासौरूषुः सूत्रे महात्मनाम् ॥२१६२३| अर्थ - भगवान जिनेन्द्रदेव ने सज्जन पुरुषोंके लिये उपसंपत् नामका समाचार पांच प्रकार का बतलाया है । विनय, क्षेत्र, मार्ग, सुखदुःख और सुखके विषय में महामाओं के लिये अपनी सेवा का निवेदन करना पांच प्रकार की उपसंपत् है ।।२१८२ ॥
विनमोपसम्पत् समाचार का स्वरूप
यतीनां विनयोषवार ऊजितः । श्रंगांघ्रिमईनः संस्तरासनादिनिवेदनम् ।।२१८३ ।। श्रावास भूमिपृच्छा पुस्तकादिसमर्पणम् । इत्यादिकराय द्विनयोपसम्यदेव सा ।। २१८४ ।।
अर्थ - जो मुनि बाहर से आये हैं और अपने स्थान में आकर ठहरे हैं उनका उत्कृष्ट विनय और उपचार करना, उनके शरीर को दाबना, पैरों को दाना, उनके लिये सोने तथा बैठने का प्रासन देना, उनके स्थानको वा उनके गुरु स्थानको पूछना तथा उनके मार्गको पूछना ( कहां से आये कहां जायेंगे आदि पूछना ) उनके लिये पुस्तक उपकरण आदि देना आदि कार्योंके करने को विनयोपसंपत् कहते हैं ।। २१८३-२१८४ ।।
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