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मूलाचार प्रदीप
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[सप्तम अधिकार के पढ़ने में प्रयत्न करना सूत्रसंपत है | अर्थ के पढ़ने में प्रयत्न करना श्रेष्ठ अर्थसंपत है। सूत्र और अर्थ दोनों के पढ़ने में प्रयत्न करना तदुभयसंपत् है। अब आगे पदविभागी समाचार का थोड़ा सा लक्षरण कहते हैं ॥२१९१-२१६३॥
पविभागी समाचार का लक्षणप्रथपिचवमहाप्राशः समर्थः सकलगुणः। वीर्यधयंतपोयोगोत्सहाय :संयताप्रणीः ।। २१६४ । स्वगु/दिगतंस असमास्वापरागमम् । शातुमिच्छन्प्रणम्योच्च:पृष्लोतिनिजंगुरुम् ।।२१६५॥
। युष्मत्प वप्रसादेन' भवन्सूरिमूजितम् । सागमपरिशाम कुशलं चापरं प्रति ।।२१६६।। गन्तुमिच्छामिराश्याश्यागमाध्ययनहेतवे । इतितिम्रोयथा पंच षट्वापृच्छाः करोति सः ॥२१६७॥
अर्थ- जो कोई उत्तम मुनि अत्यंत बुद्धिमान हो, समस्त गुणों से, वोर्य, धर्म, तप, योग और उत्साह आदि समस्त गुणोंसे सुशोभित हो और उसने अपने गुरुसे उनके जाने हुए समस्त शास्त्र पढ़ लिये हों तथा फिर अन्य शास्त्रों के पढ़ने को उसकी इच्छा हो तो वह अपने गुरुको प्रणाम कर पूछता है कि हे प्रभो ! अब मैं आपके चरणों को प्रामानुसार किसी ऐसे उत्तम और पूज्य प्राचार्य के पास जाना चाहता हूं जो समस्त पागम के ज्ञानमें कुशल हों तथा वहां आकर अपनी शक्तिके अनुसार अन्य आगमों का अध्ययन करना चाहता हूं। इसप्रकार वह शिष्य तीन बार, पांच बार वा छह बार पूछता है ।।२१६४-२१६७॥
अन्य संघमें मुनि को अकेला नहीं जाना चाहिएएवमापृच्छ्ययोगीन्यप्रेषितोगुरुणा बतिः । प्रात्मचतुर्थएवात्मतृतीयो वा जिसेन्द्रिय: २१६८।। अपवास्मद्वितीयोसोनवाचार्यादिपाठकान् । निर्गच्छति ततः संघारेकाको नसुजाचित् ॥२१६६।।
अर्थ-इसप्रकार वह अपने गुरुसे पूछता है और यदि गुरु जाने की प्राजा दे देते हैं तो वह मुनि अन्य तीन साधुओं को अपने साथ लेकर अथवा अन्य दो साधनों को अपने साथ लेकर अथवा कम से कम एक अन्य मुनिको अपने साथ लेकर अत्यन्त जितेन्द्रिय यह साधु आचार्ग और उपाध्यायों को नमस्कार कर तथा वृद्ध मुनियों को नमस्कार कर उस संघ से निकलता है। किसी भी मुनिको अकेले कभी नहीं निकलना चाहिये ॥२१९८-२१६६।।
१ विख्यात