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मूलाचार प्रदीप ]
( ३४४ )
[सप्तम अधिकार तीन रात दिन तक आगन्तुक मुनि की सहायता करते हैंमायातस्यत्रिरात्रंसरपरीक्षाकरणाय च । संघाटकः प्रदातव्योनियमात्तेन सूरिणा ॥२२४६॥
अर्थ-तदनंतर उस संघके प्राचार्य आये हुए, उन मुनि को परीक्षा करने के लिये तीन रात तक नियम से उनकी सहायता करते हैं । रहने, चर्या करने, साथ रहने भादि में सहायता करते हैं ॥२२४६॥
आगन्तुक मुनि के चारित्रादि की परीक्षा करना चाहियेमाग तुफारच वास्तम्याः परीक्षन्ते परस्परम् । अयमोपायवृत्तानांयरनेनाचरणाय च ॥२२४७॥ मावाश्यकतनत्सर्गस्वाध्यायकरणादिषु । भिक्षाकाले मलोत्सर्गसमित्यादिप्रपालने ॥२२४८।।
अर्थ-उन आये हुए मुनियों को अपने यहां निवास कराना चाहिये और उनके चारित्रका ज्ञान तथा परस्पर का ज्ञान करने के लिये प्रयत्नपूर्वक आचरण कराने के लिये आवश्यक करते समय, कायोत्सर्ग करते समय, स्वाध्याय करते समय, भिक्षा करते समय, मलमूत्र त्याग करते समय और समितियों के पालन करते समय उनकी परीक्षा करनी चाहिये ।।२२४७-२२४८।।
आगन्तुक मुनि भी प्राचार्य की परीक्षा कर अपने प्रयोजन का निवेदन करेविधान्तस्तहिन स्थिरवा परीक्ष्याचार्यमुत्तमम् । स्वाध्यागमनकार्य स विनयेन निवेदयेत् ।।२२४६।।
___अर्थ-वे पाये हुए मुनि उस दिन रहर कर विश्राम लेते हैं अथवा दो तीन दिन तक विधाम करते हैं और फिर उत्तम प्राचार्य की परीक्षा कर बड़ी विनयके साथ उनसे अपने प्राने का प्रपोजन निवेदन करते हैं ॥२२४६॥
प्राचार्य आगन्तुक मुनि से नाम आदि पूछते हैंततस्तस्यफुलनामगुरु दीक्षादिनानि च । श्रुतागमनकष्टाटीनगरणीपूच्छतिचादरात् ॥२२५०।।
अर्थ- तदनंतर वे आचार्य आवर के साथ उनसे पूछते हैं कि तुम्हारा नाम क्या है, तुम किस गुरुके शिष्य हो, दीक्षा किससे ली है, दीक्षा लिये कितने दिन हो गये, तुम्हारा श्रुतज्ञान कितना है और किस दिशा से कहांसे आये हो । ये सब बातें आचार्य उनसे पूछते हैं ॥२२५०॥ प्रागन्तुक मुनि परीक्षा में शुद्ध हृदय घाना सिद्ध हो जानेपर श्रुतके पठनादि करने की माझा देते
इतिप्रश्नपरीक्षाचं यंयचौगुबमानसः । विनीतोषीमान् व्रतमीलापरिमयुतः ॥२२५१।। तपास्यरिणा तेम मिणशक्रयासमीहितम् । भूतानिपाठनसर्वविविधिपूर्वकम् ॥२२५२।।