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मूलाचार प्रदीप]
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[ षष्ठम अधिकार अर्थ-योगी पुरुष मोक्ष प्राप्त करने के लिये जो जीव समासों के भेद से चौदह प्रकार के जीवों को प्रयत्न पूर्वक रक्षा करते हैं उसको भी उत्कृष्ट प्राणिसंयम कहते हैं ॥२१४१॥
___ संयम पालन करने की प्रेरणाइत्येते संयमाः सर्वे प्राणोनियाभिषाबुधैः । विधेया बलबीर्यान्या संवराय शिवाय च ।।२१४२५॥
अर्थ-बुद्धिमान पुरुषों को कर्मों का संवर करने और मोक्ष प्राप्त करने के लिये अपना बल और वीर्य प्रगट कर ऊपर लिखे हुए प्राणी और इन्द्रिय के भेद से अनेक प्रकार के संयमों का सवा पालन करते रहना चाहिये ।।२१४२॥
तपश्चरण करने में शक्ति नहीं छिपानी चाहिएअनुगृहितवीर्याणां स्युविश्वसंयमाः पराः । सत्तपांसि च सर्वारिणगुणा ज्येष्ठाः शिवादयः ।।४३।। मानिसमाचारे पक्ष करण खिन : योगासन्या का कार्य में वीर्याच्छादनंमना ।।२१४४।।
अर्थ-जो संयमी अपनी शक्तिको नहीं छिपाते हैं उन्हीं के समस्त उत्कृष्ट संयम होते हैं, उत्कृष्ट समस्त तपश्चरण होते हैं, उसम गुण प्रगट होते हैं और उन्हीं को मोक्षको प्राप्ति होती है । यही समझकर संयमोंके पालन करने में समस्त तपश्चरणों के करने में वा प्रातापनादि योग धारण करने में अथवा और ऐसे ही कार्यों में अपनी शक्तिको कभी नहीं छिपाना चाहिये । अपने वीर्य को कभी ढकना नहीं चाहिये । ॥२१४३-२१४४॥
पंचाचार पालन करने की प्रेरणा और उसकी महिमा - एवंपंचविधामभिनेवागवतानाचारमेवात्परान, मुक्त्यं ये निपुणा भजन्ति परया भक्त्यात्रिशुबथाखिलान् । हत्वाधातिरिपून्समाप्यपरमें मानं सुरैः पूजनं, तेऽन्त्यांगाश्चमिहत्यकर्मयपुसोयान्येवमुक्त्यालयम् ॥२१४५।। येन्येश्रीमुनिनायकाः सुरवताः शश्या चरम्स्युजितान्, एतान्पंचविधानविमुक्तिजनकाम् प्राचारसारानता। ते मुक्त्वात्रिजगद्वषं वरसुखसर्वार्थसिद्धचाविज,
राज्यं चानुसमाप्यसंयममतोगच्छन्तिमोक्षकमात् ॥२१४६।। इति विस्तितवाः पंचधाचारसारान्, शिवसुखगतिहेतून् कर्ममातंगतिहान् । फुगतिगृहकपाटान तीनाथः निषेव्यान, भजत शिवसृखाप्त्यमोहशत्रु निहत्य ।।२१४७४