________________
मूलाचार प्रदीप]
[ षष्ठम अधिकार रखना उत्तम मानसिक विनय है ।।१९४२-१९४४॥
प्रत्यक्ष विनय का स्वरूपप्रत्यक्षे सद्गुरूणां यो विनयः क्रियते भूषः । त्रिसपा विविधः सोत्र प्रत्यक्ष विनयो मतः ।।४५॥
अर्थ-विद्वाम लोग मन-वचन-काय को शुद्धता पूर्वक मन-वचन-काय तीमों से जो श्रेष्ठ गुरुनों को प्रत्यक्ष विनय करते हैं उसको प्रत्यक्ष विनय कहते हैं ॥१९४५।।
परोक्ष विनय का स्वरूपपरोक्ष सद्गुरूणां यत प्रणामकरणाविकम् । कायेनवचसा निस्मंस्तवाविगुण कीर्तनम् ॥४॥ हवाज्ञापालनं सम्यक् सबगुरणप्रामचिन्सनम् । इत्याधिक्रियतेऽन्यत्सपरोधिमयोऽखिलः ।।१६४७।।
अर्थ-इसोप्रकार गुरुओं के परोक्षमें शरीर से तथा वचन से नित्य हो उनको प्रणाम करना, उनकी स्तुति करना, उनके गुण वर्णन करना, हृदय से उनकी आज्ञा का पालन करना, उनके श्रेष्ठ गुणों के समूहको अच्छी तरह चितवन करना तथा और भी उनकी परोक्षमें उनकी विनय करना परोक्ष विनय कहलाती है ।।१९४६-१९४७॥
शारीरिक, वाचनिक एवं मानसिक विनय के भेदअथवा सप्तधानोक्तः कायिको विनयो जिनः । वसु(वाधिक सारो डिभामानसिकोमहत् ॥४॥
मर्थ अथवा भगवान जिनेन्द्रदेव ने शरीर से होनेवाली विनय के सात भेद बसलाये हैं । वाचनिक विनय चार प्रकारको बललाई है और मानसिक विनय दो प्रकार बतलाई है ।।१९४८॥
६ प्रकार के कायिक विनय का स्वरूपप्रभ्युत्थानप्रणामोहासमयान महागुरोः। पुस्तकादिप्रदानं च क्रियाकर्मत्रिभक्तिजम् ॥१४॥ स्वोच्चासनपरित्यागः पृष्टोनुव्रजन कियत् । बिनयाः कायिका एते सप्तमेदा वपुर्भवाः ॥१९५०॥
अर्थ--महा गुहनों के मानेपर उठकर खड़े हो जाना, उनको प्रणाम करना, उनको प्रासन देना, पुस्तक देना, श्रतभक्ति प्राबि तीनों भक्तियां पढ़कर उनकी वंदना करना उनके सामने अपने प्रासनको छोड़ देना, और उनके जाते समय थोड़ी दूर तक उनके पीछे जाना यह गारीर से होनेवाली सात प्रकार को कायिक विमय है ॥१९४६१९५०॥
४ प्रकार के वाचनिक विनय का स्वरूप और धर्म वृद्धि का कारणहितभाषणमेकं द्वितीयमितभाषणम् । पयः परिमितं वनानुधीधीभाषण स्फुटम् ।।१९५१।।