________________
मूलाचार प्रदीप]
( २६३ )
[षष्ठम अधिकार गुणप्रकाशनं लोकेल्यातिश्च यतेतराम् । मुमुक्षुभिः स सर्वोप्यनितषाचार उच्यते ।।७२।।
अर्थ-कोई अभिमानी पुरुष किसी उत्तम शास्त्र को किसी सामान्य मुनि से पढ़कर यह कहे कि मैंने तो यह शास्त्र अमुक महा ऋषिसे पढ़ा है। अथवा किसी उत्तम शास्त्र को किसी निग्रंथ मुनि के समीप पढ़कर यह कहे कि मैंने तो यह शास्त्र अमुक मिथ्या साधु से, कुलिंगी से पढ़ा है । अश्वा पढ़े हुये शास्त्रके लिये भी यह कहे कि मैंने यह शास्त्र नहीं पड़ा है अथवा नहीं सुना है अथवा मैं इसको नहीं जानता इसप्रकार जो मूर्ख लोग कहते हैं उसको निह्नव कहते हैं । इस निलय दोषका त्याग कर आचार्य आदि योगियों की, गुरु की, उपाध्याय की, शास्त्रों की और सुनने था पड़नेको प्रसिद्धि करना लोक में प्राचार्य गुरु उपाध्याय आदि के गुण प्रकाशित करना मोक्ष की इच्छा करनेवाले मुनियों के अनिनवाचार कहलाता है ।।६८-७२।।
व्यंजनाधार, अर्थाचार और उभयाचार का स्वरूपप्रक्षरस्वरमात्राय यस्छुछ पठ्यतेभतम् । वक्षगुरूपदेशेन व्यंजनाचार एव सः ॥७३॥ पर्थेनान्न विशुख यत्सदालंकृतश्रुतम् । पठ्यते पाठयतेऽन्येषांसोर्थाचारः श्रुतस्य ।।७४। अर्धाक्षरपिशुद्ध यदधीयतेजिनागमम् । विविस्तबुभयाचारो मानस्य कथ्यतेमहान् ।।७।।
अर्थ-चतुर पुरुष गुरु के उपदेशके अनुसार जो अक्षर स्वर मात्राओं का शुद्ध उच्चारण करते हैं उसको व्यंजनाचार कहते हैं । अर्थ से अत्यंत सुशोभित शास्त्रों का शुद्ध अर्थ पढ़ना और शुद्ध ही अर्थ पढ़ाना ज्ञान का अर्थाचार कहलाता है। नो जिना. गमको शब्द अर्थ दोनों से विशुद्ध अध्ययन करता है उसको विद्वान् लोग ज्ञानका महान उभयाचार कहते हैं ।।७३-७५।।
विनयादि पूर्वक स्वाध्याय का फलएभिरष्टविधाचाररषोतं यजिनागमम् । तविहवाखिलं ज्ञानं जनयेद्वाशु केवलम् ।।७।। विनयाचं रपीतं यत्प्रमादाद्विस्मृतंश्रुतम् । तथामुत्र च तदशानं सूते च केवलोक्यम् ।।७७॥ कानमष्टविधाधारैः पठितंयमिनास्फुटम् । अनन्तकमहाम्यस्यात् कर्मबंधाय चान्यमा ७८|| विज्ञायेति विदो ज्ञान कालेन्द्रविनयादिभिः । पठन्तु योगशुस्था वा पाटयम्तुततांचिये ॥७
अर्थ- इसप्रकार पाठ प्रकार के ज्ञानाचारों के साथ-साथ जो जिनागम का अध्ययन किया जाता है उससे इसी लोकमें पूर्ण ज्ञान प्रगट हो जाता है तथा उसे शीघ्र ही केवलज्ञान प्रगट हो जाता है। जो जिनागम विनयादिक के साथ अध्ययन किया गया है तथा प्रमाव के कारण वह मूला जा चुका है तो भी उसके प्रभाव से परलोकमें