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मूलाचार प्रदीप]
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[ षष्ठम अधिकार अष्टवेलाशनस्यागादष्टम स्त्रिचतुर्थजः । वशभोजनसंख्यागाद्दशमः कर्मनाशकः ॥१७६२।।। द्विषडवेलाशनत्यागास्त्रोक्तो द्वादशमो जिनः । इत्याद्याः प्रोषधानेया साकांक्षानशनस्य च ॥१३॥ पक्षमासोपवासादि षण्मासान्तं तपोऽनघम् । क्रियते यन्महायोरः सर्व साकांक्षमेवता ॥१७९४॥ कनकावली सिंहनिःक्रोडिप्तादयोखिलाः । भद्र लोक्यसारायाः साकांक्षेन्त वामताः ॥१७६५॥
अर्थ—जिस उपवासमें धारणा पारणाके दिन एकाशन किया जाता है उसको भगवान सर्गज्ञदेव चतुर्थ नामसे कहते हैं । इस उपयास में चार समय के भोजन का त्याग किया जाता है इसलिये यह चतुर्थ नाम का महा उपचास सार्थक नाम को धारण करनेवाला है । यदि छह समय के प्राहार का त्याग कर धारणा पारणा के दिन एकाशन कर मध्य में जो उपवास किये जाय तो उसको षष्ठ नाम का उपवास कहते हैं। जिसमें आठ समय के प्राहार का त्याग किया जाय अर्थात् धारणा पारणा के मध्य में तीन उपवास किये जाय उसको अष्टम उपवास कहते हैं । तथा जिस उपवास में दश समय के आहार का त्याग किया जाय अर्थात् धारणा पारणाके मध्य में चार उपवास किए जाय उसको कर्मों का नाश करनेवाला दशम उपवास कहते हैं । जिस उपवास में बारह समय के प्राहार का त्याम किया जाय अर्थात् धारणा पारणा के मध्य में पांच उपवास किये जांय तथा धारणा पारणा के बिन एकाशन किया जाय उसको द्वादशम उपवास कहते हैं । इसप्रकार के जो प्रोषधोपवास हैं वे सब साकांक्ष अनशनके भेद हैं । इसीप्रकार महा धीर वीर पुरुष जो एक पक्ष का था एक मास का उपवास करते हैं वा छह महीने लक का उपवास करते हैं तथा इसप्रकार जो पाप रहित तपश्चरण करते हैं उस समको आकांक्ष अनशन कहते हैं । इसी प्रकार कनकावली, एकावली, सिंह, निष्क्रीडित प्रावि प्रतों के जितने उपवास हैं वा भद्र अलोक्यसार प्रादि व्रतों के जितने उपचास हैं, वे सब साकांक्ष अनशन में ही अंतर्भूत होते हैं ॥१७६०-१७६५।।
निराकांक्ष अनशन का स्वरूप व भेदमरणं भक्तप्रत्यास्थानमिगिनीसमाहृयम् । प्रायोपगममहोत्यायान्यानि मरणानि च ॥१७६६|| मानि तामि समस्तानि यावज्जीवाषिताम्यपि । मिराकासोपवासस्य बहुभेदानि विद्धि भो ।।७।।
अर्थ-भक्तप्रत्याख्यान मरण, इंगिनीमरण, प्रायोपगमनसन्यास मरण इस प्रकारके जितने सन्यासमरण हैं उनमें जो जीवन पर्यंत आहारका त्याग कर दिया जाता है, उसको नियकांक्ष उपवास कहते हैं । उस निराकांक्ष उपचासके भी इसप्रकार के मरण के मेद से अनेक भेद हो जाते हैं ॥१७६६-१७१७॥