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मूलाधार प्रदीप
( १४४ )
[तृतीय अधिकार - पाक्षिक वंदना में आवश्यक भक्तियांपाक्षिके दिवसे सिद्धचारित्रशान्तिभक्तयः । श्रीसिद्धप्रतिमायां श्रीसि विभक्तिविधीयते ॥८३।।
अर्थ-पाक्षिक बंदनामें सिद्धभक्ति, घारित्रभक्ति, शांतिभक्ति पढ़नी चाहिये तथा सिद्ध प्रतिमा के सामने सिद्धभक्ति पढ़नी चाहिये ॥८८३॥
अपूर्व चैत्य एवं चैत्यालय में कौनसी भक्ति करनी चाहिये-- अपूर्वत्यत्यालये सिद्धचस्यसंज्ञके । भक्ति चारित्रसस्पंचगुरुश्रीशांतिनामिकाः ॥१८॥
___ अर्थ-अपूर्व चैत्य वा अपूर्व चैत्यालय में सिद्धभक्ति, चैत्यभक्ति, चारित्रभक्ति, पंचगुरुभक्ति और शांतिभक्ति पढ़नी चाहिये ॥४॥
नंदावरकतोनी पवा में कौन भक्ति करेंनन्दीश्वरत्नये सिद्धचैत्यभक्ति स्वभक्तिः। विधातव्ये ततःपंचगुरुशास्यविधै परे ॥१८५।।
अर्थ-नंदीश्वरके तीनों पर्वो में सिद्धभक्ति, चैत्यभक्ति, नंदीश्वरभक्ति, पंचगुरुभक्ति और शांतिभक्ति पढ़नी चाहिये ॥५॥
भगवान् के जन्म कल्याणक के दिन कौनसी भक्ति करनी चाहियेजिनेन्द्रप्रतिमायाश्च तीर्थेशजन्मनो बुधः । सिद्ध चारित्नशान्त्याल्या दातव्या सक्तयो मुदा ।।
अर्थ-भगवान जिनेन्द्रदेवकी प्रतिमाके सामने तथा तीर्थकरके जन्म कल्याणक के दिन बुद्धिमानोंको सिद्धभक्ति, चारित्रभक्ति और शांतिभक्ति पढ़नी चाहिये ।।८८६॥
___ अभिषेक की वंदना में कौनसी भक्ति पढ़ें ? कर्तव्या अभिषेकस्य वंदनाया सुभक्तयः । सिद्धचत्यमहापंचगुरुशांतिजिनेशिनाम् ॥८८७॥
अर्थ-अभिषेक की वंदना में सिद्धभक्ति, चैत्यभक्ति, पंचमहागुरुभक्ति और शांतिभक्ति पढ़नी चाहिये ।।७।।
___ भगवान की चल-मचल प्रतिष्ठा में कौनसी भक्ति पढ़ें ? जिनेन्द्रप्रतिबिम्बाना स्पिरान या घासात्मनाम् । प्रतिष्ठायां भवेसिद्धशांति भक्त्यायः द्वयम् ॥
अर्थ-भगवान जिनेन्द्रदेव को चल और अचल प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा में सिद्धभक्ति और शांतिभक्ति ये दो भक्ति पढ़नी चाहिये ॥८८||
स्थिर प्रतिमा के चतुर्थ अभिषेक के दिन कौन-कौनसी भक्ति पढ़ेंस्थिराहत्प्रतिमायां च चतुर्थस्नपनाहनि । सिद्धभक्तिाच चारित्रभविकरालोचनापुता ॥८६॥ *