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मूलाधार प्रदीप]]
[ चतुर्थं अधिभार प्राण होनेपर भी निद्रा मतलो ।।२२-२३॥
भमि शयन मुलगण की महिमा और धारण करने की प्रेरणायजन परिसेव्य धर्मशुक्मादि मूल, श्रमहरमपवर्ष योगश्रीशं गुणानिधम् । निहामदनसर्प निष्प्रभावस्वहेतुः, क्षितिशयनमतंद्रामुक्तये स्वीकुरुध्वम् ।।१३२४।।
अर्थ-इस भूमिशयन नामके मूलगुण को विद्वान लोग धारण करते हैं, यह धर्मध्यान और शुक्लध्यानका कारण है, परिश्रम को हरण करनेवाला है, समस्त दोषों से रहित है, मोगसाधन का कारण है, गुणों को समृद्र है, कामरूपी सर्पको नाश करने वाला है और प्रमाद को दूर करने का कारण है। इसलिये मोक्ष प्राप्त करने के लिये साया तंद्रा दूर करने के लिये इस भूमिशयन बल को अवश्य धारण करना चाहिये । २४॥
मदन्त धावन सुलगुण का स्वरूपस्थमगुलियापाणले विनोखपराधिभिः । तृपस्बजाविकचरताना मलसंचयः पार। मामिणक्रियते जातु बैरमयाम मुनीश्वरः । प्रवैतवनमेवान तद्रागाविनिवारकम् ॥२६॥
अर्थ-मिराज अपना वैराग्य बढ़ाने के लिये अपने नखों से, उंगली से, पत्थर से, कलम से, खप्पर से, तृण से का छाल से दांतों में इक? हुए मल को कभी दूर नहीं करते हैं उसको रागादिकको दूर करनेवाला प्रतधावन नामका मूलगुण कहले
अवन्त धावन से लाभ और दन्त धाथन से हानिअनेक थोतरगत्वावयो व्यतागुणाः सलाम् जामन्ते प्रणश्यन्ति दोषा रागादयोखिला:'।।२७॥
मुजादियोवनं बतघर्षण में वितरवले मंगसंस्कारमत्यर्थं तेषां रागोत्कटो भवेत् ॥२॥ कामश्व कामेन प्रलमंगोलितोंडूत: । लेन पॉप महापापा न्भज्जन मरकाम्मषौ ॥२६॥
अर्थ--इस अदंतधावन बालसे सज्जनोंके वीलरागादिक गुरंग प्रगट हो जाते हैं तथा रागादिक समस्त दोष नष्ट हो जाते हैं। जो पुरुष अपना मुख धोते हैं वेतधावन करते हैं और शरीर का खूब संस्कार करते हैं उनके उत्कट राग उत्पन्न होता है । उस जकट रापसे काम के विकार उत्पन्न होते हैं काम के विकारों से वतोंका भंग होता है, समस्त वृत भंग होने से महापाप उत्पन्न होता है और उस महापाप से इस जीव को नरकरूपी महासागर में डूबना यता है ॥२७-२६।।