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मूलाधार प्रदीप [
( २२६ )
[ पंचम अधिकार
उदरस्थाब्धिस्थान विमानाधार वायवः । प्रत्रैवान्तर्भवा ज्ञेयाः भवनस्थादिका खिलाः ||२४||
अर्थ - सामान्य वायु को बात कहते हैं, ऊपर को जाने वाली वायुको उद्रम कहते हैं, गोलाकार घूमते हुए वायु को उत्कलि वायु कहते हैं पृथ्वी से लगकर चलने वाले वायुको गुंजाबात कहते हैं वृक्षादिकों को तोड़ देनेवाला महावात कहलाता है । घनवात तनुवात पंखा आदि से उत्पन्न किया हुआ वायु, पेट में भरा हुआ वायु, पृथ्वी समुद्र विमान आदि को प्राथय देने वाला वायु तथा भवनों में रहने वाला वायु सद है ॥२२-२४।।
सामान्य वायु में अंत
महादाह होनेपर भी वायुकायिक जीवों की हिंसा नहीं करना चाहियेइमान् वातरंगिनो मरवा यात्यमोषां विराधना । न विधेया महाबाहे वातादिकरणं धेः ।। २५ ।। अर्थ – यह सब वायु वातकायिक जीवमय है । यही समझकर बुद्धिमान पुरुषों को महा वाह होनेपर भी वायु को उत्पन्न कर यातकायिक जीवों को विराधना नहीं करनी चाहिये ||२५||
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वनस्पतिकायिक और अनन्तकायिक वनस्पति का स्वरूप
मूलापरवोजाः वस्वीजसंज्ञकाः । बीज श्रीजरहा एते कंदाचा रोहसंभवा ।। २६ ।। rtor: समूहिमा मूलाभावेपि समु बाः । प्रत्येककायिका जोवा अनंतकायदेहिनः ॥२७॥ कंदमूलां गिनत्वस्कंषः पत्रं कुसुमं फलम् । प्रवाल गुच्छकायश्च गुरुमं वल्लीतृणान्यथ ||२८|| पकाया इमे ज्ञेयाः पृथ्वीतोवादिसंभवाः । बिना वीजेन नाना मेवा वनस्पतिकायिकाः ||२॥ संवालं परकं सुमित संघालमेव हि । कवगं नाम भंगालं वकच्छत्रं हरिप्रभम् ||३०|| कुहरणायं स्थिलाहार के जिला विस्यपुष्पिका । एतेन वादरा ज्ञेया श्रनन्तफाथिका बुधैः ॥३१॥
अर्थ – मूलबीज, अग्रबीज, पर्वबीज, कंबबीज, स्कंधबीज, बीजरूह ये सब कंदाबिक से उत्पन्न होनेवाले वनस्पतिकायिक जीव हैं । इनके सिवाय सम्मूर्च्छन जीव हैं जो मूलाविक का अभाव होने पर भी उत्पन्न हो जाते हैं । इनमें से कोई प्रत्येक कायिक हैं और कोई अनंतकाय हैं । कंद मूल त्वक् (छाल) स्कंध पत्र कुसुम फल नया कोंपल, गुच्छ गुल्म बेल तृण प्रादि सब अनंतकायिक हैं। तथा बिना बीजके पृथ्वी जल आदि के संयोगसे उत्पन्न होनेवाले अनेक प्रकार के पर्व कायिक हैं जो अनंतकाय कहलाते हैं । सेवाल, पणक, भूमिगत, सेवाल, कवग, श्रृंगाल, वकछत्र हरिप्रभ, कुहरण, स्थिताहारक, जिह्वादि, पुष्पिका ये सब बादर अनंतकाय हैं ऐसा विद्वानों को समझ लेना चाहिये ।। २६-३१॥