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[ पंचम अधिकार
मुलाचार प्रदीप ]
( २३२ )
दो इन्द्रिय जीवों का स्वरूप
क्रमयः शुक्तिकाः शंखा कपर्दकाश्च बालकाः । जलुकाद्याः भूते ज्ञेया द्वीन्द्रिया दीन्द्रियान्विताः ॥ अर्थ-लट, सीप, शंख, जोंक, लोक आदि जीवों के स्पर्शन और रसना दो इन्द्रियां हैं इसलिये इन जीवों को दो इन्द्रिय कहते हैं ॥४७॥
तीन इन्द्रिय जीवों का स्वरूप
कुवोवृश्चिका कामत्कुरणश्च पिपीसिकाः । उद्देहिकाद्या गोपानिकास्त्रीन्द्रियशरीरिणः ॥ ४८ ॥ प्र-कुथु, बौद्ध, ज, खटमल, चींटी, उद्देहिका, गोपानिका आदि जीवों के स्पर्शन, रसना, घ्राण ये तीन इन्द्रियां है इसलिये इनको तेइंद्रिय कहते हैं ॥ ४८ ॥ चार इन्द्रिय जीवों का स्वरूप-
अमरामशका दंशाः पतंगामधुमक्षिका । कोटका मिक्षकायाश्च चतुरिन्द्रियजातयः ॥ ४६||
श्रर्थ - भौंरा, मच्छर, डांस, पतंगा, मधुमक्खी, मक्खी, दीपक पर पड़ने वाले जीवों के स्पर्शन, रसना, प्राण और एच हैं इसलिये इनको चौइंद्रिय कहते हैं॥४६॥
पंचेन्द्रिय जीवों का स्वरूप
जलस्थलनभोगामिनस्तिर्यचोनशः सुराः । नारकाः सकलाः प्रोक्ता जोवाः पंचेंद्रियाः श्रुते ॥ ५०॥ अर्थ-मगरमच्छ श्रादि जलचर, कबूतर आदि नभचर और गाय, भैंस आदि स्थलचर जीव पंचेन्द्रिय हैं मनुष्य देव और समस्त नारको जीव भी पंचेन्द्रिय हैं ऐसा शास्त्रों में कहा है ।। १४५० ।।
चौरासी लाख योनियों के स्वामी
पृथ्व्यप्तेजोमहत्या लक्षाणां सप्तसप्त च । नित्यैसर निकोताः किलवनस्पतयोदश ॥ ५१ ॥ द्विद्विलक्षणमा द्वित्रिचतुरक्षा: पृथक्सुराः । तिथेचो नारकालक्षाणां चत्वारः पृथक्पृथक् ।। ५२ ।। तिलक्षसंख्यां श्रार्यम्लेच्छाखिला नराः । इति सर्वांग लक्षरणामशीतिश्चतुरुतराः ॥ ५३३२॥
अर्थ -- इनमें से पृथ्वीकायिक, जलकायिक, वायुकायिक और अग्निकायिक जीवोंकी सात सात लाख योनियां हैं । नित्यनिगोत और इसरनिगोत की भी सात-सात लाख योनियां हैं वनस्पतिकायिक की दश लाख योनियां हैं, दोइन्द्रिय की दो लाख तेइन्द्रिय की दो लाख और चौइन्द्रिय की वो लाख योनियां हैं। वेबों को चार लाख,