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मूलाचार प्रदीप ]
(२३३ )
[पंचम अधिकार तिर्यचोंकी चार लाख और नारकियों की चार लाख योनियां हैं तथा आर्य और म्लेच्छ के भेवसे दोनों प्रकार के मनुष्यों की चौदह लाख योनियां हैं । इसप्रकार समस्त जीवों की चौरासी लाख योनियां हैं ।।५१-५३।।
एक सौ साढ़े निन्यानवे लाख करोड़ कुलों के स्वामी कौन कौन--- इत्थंविधवांगि जातीः सम्यग्निहाय मिनागमात् । ततः सतां दयासिद्धय वक्ष्ये कुलानिदेहिनाम् ।। पृथ्वीनांकलकोटी लक्षाणां द्वाविंशति स्फुटम् । अप्कायिका गिनां सप्तत्रयश्धानलदेहिनाम् ।।५।। मरतां कुल कोटीलक्षाणि सासकुलानि थे। कोटीलक्षारिण चाष्टाविंशतिहरितजन्मिनाम् ।।५६।। होन्त्रियाए तथा श्रोत्रियाणां तुर्येन्द्रियात्मनाम् । कोटीशतसहस्राणिसप्तचाष्ठो नवक्रमात् ॥ अपचराणां नभोगामिना किलाद्ध त्रयोदश । हादर्शयकमात्सस्ति लक्षारिग कुलकोटयः ।।५।।
वशव कोटि लक्षाणि चतुष्पांकुलानि च । पंचविंशतिकोटीलक्षाणिनारकवेहिनाम् ।।५।। स्युः पविशतिकोटीलक्षारिण बेव कुलानि च । नवव कोटि लक्षारिसह्य : सस्मिनो भुविः ।। फुलान्यत्रमनुष्यारणामार्यम्लेखगास्मनाम् । द्विसप्तकोटिलक्षारिण सर्वेषामितिजग्मिनाम् ।।६।। एकव कोटि फोटोसानिति नवाधिका । कोटीशतसहस्त्राणि कुल संख्या जिनोरिता ॥६२।।
अर्थ-इसप्रकार जन शास्त्रों के अनुसार समस्त जीवों की जातियों का स्वरूप बतलाया अब प्रागे सज्जनों को क्या पालन करने के लिये जीवों के कुल चतलाये हैं । पृथ्वीकायिक जीवों के बाईस लाख करोड़, जलकायिक जीवों के सात लाख करोड़, अग्निकायिक जीवों के तीन लाख करोड़, वायुकायिक जीवों के सात लाख करोड़ श्रीर वनस्पतिकायिक जीवों के अट्ठाईस लाख करोड़ कुल हैं । दोइन्द्रिय जीवों के सात लाख करोड़, इन्द्रिय जीवों के साठ लाख करोड़, चौइन्द्रिय जीवों के नौ लाख करोड़ कुल हैं। जलचर जीवों के साढ़े बारह लाख करोड़, नभचर जीवों के बारह लाख करोड़ कुल हैं । चतुष्पदों के दश लाख करोड़ कुल है, नारकियों के पच्चीस लाख करोड़ कुल हैं, देवों के छब्बीस लाख करोड़ कुल हैं और सरीसपो के नौ लाख करोड़ कुल हैं। पार्य, म्लेच्छ और विद्याधरों के चौवह लाख करोड़ कुल हैं । इसप्रकार समस्त जीवोंके कूलों की संख्या एकसौ साढ़े निन्यानो लाख करोड़ होती है। इसप्रकार भगवान जिनेन्द्रदेव ने इनके कुल बतलाये हैं ॥५४-६२।।
जाति कुलादि से जीवों का स्वरूप जानकर उनकी रक्षा की प्रेरणाइप्ति जाति कुलाम्पत्रगुरणस्मानामिमार्गणाः । सम्यग्विनरय जीवानांश्रुते कार्या क्या न्यहम् ॥३॥
अर्थ-इसप्रकार जीवों की जाति कुल गुणस्थान और मार्गणाओं को शास्त्रों