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मूलाचार प्रदीप ]
[पंचम अधिकार सम्यग्दृष्टि के अशुभ संयोगों की प्राप्ति का प्रभावनारकृत्वं च तिर्यकाकुगतिमिदितंकुलम् । स्त्रीत्वं च विकलांगत्वक्सीवत्वं च कुजन्मताम् ।।६।।
प्रल्पायुस्त्वंदरिद्रत्वंकासरत्यममात्यताम् धर्मार्थकामरत्वं शुभभाषाविधिच्युतिम् ॥१०॥ रोगित्वं बहुपापित्यदुःमित्वमूखताविकाम् । अन्नतिनोपिदृष्टयादया मलभन्नेत्र जातुचित् ॥११॥
अर्थ-जो पुरुष सम्यग्दर्शन से सुशोभित हैं वे चाहे अवती ही क्यों न हों तथापि घे नरक गति में, तिर्यंचगति में, कुगति में, निदित कुल में, स्त्री पर्याय में, नपुंसक पर्याय में उत्पन्न नहीं होते । वे विकल वा अंगभंग शरीर को भी धारण नहीं करते, उनका कुजन्म भी नहीं होता, वे अल्पायु भी नहीं पाते, वरिद्री भी नहीं होते, कातर भी नहीं होते, अमाननीय भी नहीं होते, धर्म अर्थ काम पुरुषार्थ से दूर भी नहीं रहते, शुभभावों से रहित भी नहीं होते, वे रोगी भी नहीं होते, अधिक पापी भी नहीं होते, दुःखी भी नहीं होते और मूर्ख भी नहीं होते । सम्यग्दृष्टि पुरुष इन अशुभ संयोगों को कभी प्राप्त नहीं होते ॥६-११॥
___ सम्यग्दृष्टि के ज्योतिषी आदि निंद्य देवों में उत्पन्न होने का निषेध-- ज्योतिर्भावनभोमेनिवि किस्विषिकेषु च । प्रकीर्णकाभियोग्येषु होनेषुबाहनेषु च ॥१२॥ अन्गेनिधभोगेषुकुम्बायोगन्विताः । उत्पद्यन्ते कवाधिन्न व्रताविरहिता अपि ॥१३॥
अर्थ-सम्यग्दृष्टि पुरुष व्रत रहित हानेपर भी ज्योतिषी देवों में, भवनवासी देवों में, क्यंतर देवों में, वैमानिक देवों के किल्विषिक देवों में, प्रकोर्णक देवों में, प्राभियोग्य देवों में, वाहनादिक बनने वाले हीन देवों में उत्पन्न नहीं होते, जहांपर निदनीय मोगोपभोग की सामग्री मिलती है वहां कहीं भी उत्पन्न नहीं होते तथा कुभोग मूमि में भी उत्पन्न नहीं होते । सम्यग्दृष्टि इन स्थानों में कभी उत्पन्न नहीं होते ॥१२-१३।।
सम्यग्दृष्टि को पूज्य पद की प्राप्तिकिन्तुस्वर्गप्रजायन्सेदगादचारक्युभोवयात् । इन्द्रा: पूज्याः प्रतीन्द्रारच लोकपालामाहतिकाः ।। लोकांतिकारवााः सामानिकायोमराः । विषषभोगोपभोगाड्या जिनधर्मप्रभावकाः ॥१५॥
भनुजस्वेपि तोशावला: बकेश्वरावयः । कामदेवा गणेशारद पूजिता नसुरासुरैः ।।१६।। प्रोजस्तेजःप्रतापाड्याः महाविद्यायोंकिता।। जिनभक्ताश्च जायन्ते चतुरार्थसाधकाः ।।१७॥ किमत्र बहुनोक्त नसम्यग्वृष्टिसतांस्यचित् । सुदेवनगती मुक्त्वान्यागतिविधते न भोः॥१५॥
अर्थ-कितु सम्यग्दृष्टि पुरुष सम्यग्दर्शन के प्रभाव से स्वर्गों में पूज्य इन्द्र होते हैं अहमिद्र होते हैं प्रतीन्द्र होते हैं बड़ी ऋद्धिको धारण करनेवाले लोकपाल होते