________________
मूलाचार प्रदीप
( १४८ )
[ तृतीय अधिकार सिद्धभक्ति, चारित्रभक्ति, योगभक्ति, प्राचार्यभक्ति और शांतिभक्ति पढ़नी चाहिये। ।०७।। यदि प्राचार्य सिद्धांत पाठी हों और उत्तर गुणों के पालन कर्ता हों तो उनके
मरण होनेपर कौनमी भक्ति पढ़ेंसिद्धांतोनर सद्योगादयसूरे। सिद्धपूर्षिकाः । श्रुतचारित्रसद्योगाचार्यश्रीशांतिभक्तयः 11६०८!!
अर्थ- यदि प्राचार्य सिद्धांतवेत्ता भी हों और उत्तरगुणों को धारण करनेवाले भी हों और उनका मरण हो जाय तो सिद्धभक्ति, श्रुतभक्ति, चारित्रभक्ति, योगक्ति, आचार्यभक्ति और शांतिभक्ति पढ़नी चाहिये ।।०८।।
पाठों प्रकार के निषद्या स्थानों की भक्ति करेंइमाष्टौ च क्रियाःकार्याः शिष्यपरसंयतः । शरीरस्य निषद्यास्थानस्य वा शुभकारणाः ।।६०६।।
अर्थ- ये पाठ क्रियायें (आठ प्रकार के साधुओं के मरण होनेपर पढ़ी जाने वाली भक्तियों का पढ़ना) उनके शिष्यों को भी करनी चाहिये तथा अन्य मुनियों को भी करनी चाहिये । लथा ये शुभ क्रियाएँ उनके शरीरको भी करनी चाहिये और उनके निषद्या' स्थान को भी करनी चाहिये ।।९०६॥
श्रुतभक्ति पर्व पर भक्ति विधानप्रयमं श्रुतपंचम्याक्तिसिद्धश्रुताद्धये । श्रीश्रुताचार्यभक्तिः च कृत्यास्वाध्यायजितः ॥१०॥ ग्राह्यस्तत्त्वार्थसूत्राणि पटिश्वानुबुधश्च तम् । निष्ठाप्य श्रुतभवत्यन्ते शांतिभक्तिविधीयते ॥
___ अर्थ-श्रुत पंचमीके दिन पहले तो सिद्धभक्ति और श्रुतभक्ति पढ़नी चाहिये। फिर श्रुतभक्ति और आचार्यभक्ति पढ़कर उत्तम स्वाध्याय का प्रारम्भ करना चाहिये फिर तत्स्वार्थसूत्र को पढ़कर बुद्धिमानों को श्रुतभक्ति पढ़कर उस स्वाध्याय को पूरी करना चाहिये और फिर शांतिभक्ति पढ़नी चाहिये ।।६१०-६११॥
ममाधिमरण के प्रारम्भ पर क्या त्रियासत्यासारंभकाले भक्ति सिद्धयुतसंझिके 1 कृत्वा गृहीतसंन्याससंवेगांकितमानसः ।।१२।। धुलाचार्याभिधे भक्ति वस्वास्वाध्यायम तम् । गृहीत्या श्रुतभकश्यन्ते युक्त्या निष्ठापयेन्मुवा ॥
अर्थ-समाधिमरणके प्रारंभ काल में सिद्धभक्ति और श्रुतभक्ति पढ़नी चाहिये
१-समाधिस्थान ।