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मूलाचार प्रदीप]
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[ चतुर्थ अधिकार उससे चिता और अशुभध्यान के कारण ऐसे अनेक दोष उत्पन्न हो जाते हैं । यदि कहीं वह कोपीन नष्ट हो जाय तो चित्त में व्याकुलता उत्पन्न हो जाती है और प्रार्तध्यान होने लगता है तथा संसार में प्रत्यंत निवनीय ऐसी उसके लिये प्रार्थना दूसरों से करनी पड़ती है ॥६२-६३॥
शुभध्यान की सिद्धि नग्नता से ही होती हैइत्यादि चेलसंगस्य जात्या दोषान् बहून्विक्षः । अचेलस्य गुणान् सारान् धर्मशुक्लावि सिद्धये ।। दुर्ध्यानहानये नित्यं कुर्वन्ति श्रोजिनाक्यः । निर्दोष स्वाखिलांगे हो दिगटावरणं परम् ।।१५।।
अर्थ-इसप्रकार इस वस्त्र धारण करने के अनेक दोष समझकर और नग्नत्व के सारभूत बालेय गुण समका पर तीर्थकर पायेद भी धर्मध्यान और शुक्लघ्यान की सिद्धि के लिये तथा अशुभध्यानोंको दूर करने के लिये अपने समस्त शरीर पर सब दोषों से रहित ऐसा दिशामों का आवरण ही धारण करते हैं ॥६४-६५।।
__ मोक्ष सिद्धि में वस्त्र की बाधकता-- यतस्तीगवरोप्यत्र यावहस्त्रं त्यजेन च । तावन्न लभते मोक्षं काकथापरयोगिनाम् ॥६६॥
अर्थ-इसका भी कारण याह है कि तीर्थकर परमदेव भी जब तक वस्त्रों का त्याग नहीं करते हैं तब तक उनको मोक्षकी प्राप्ति नहीं होती फिर भला अन्य पोगियों की तो बात ही क्या है ॥६६॥
मग्नता धारण करने की प्रेरणामत्वेति मुक्ति कामा हि त्यक्त्या चेलाबिमंजसा 1 कलंकमिय मुक्याप्त्यै स्वाचेलत्वं भजन्तु म।।
अर्थ-यही समझकर मोक्षको इच्छा करनेवाले मुनियों को कलंक के समान वस्त्रादि का त्याग बड़ी शीघ्रता के साथ कर देना चाहिये और मोक्ष प्राप्त करने के लिये नग्न अवस्था धारण करनी चाहिये ॥६॥
प्रचंल मूलगुण का उपसंहारात्मक विवरणअसमगुण निधानंमुक्तिधामानमार्ग जिनगणधरसेव्यं विश्वसौख्याविखानिम् ।
त्रिभुवनपतिबंध धोधनाः स्वीकुरुध्वं शुभशिवगतयेत्रा चेलकावं त्रिशुद्धया ॥६॥ स्नानोसनसेकादीन मुखप्रक्षालमादिकान्। संस्कारान्सकलान् त्यक्त्वा स्व जस्लमलादिभिः ॥ लिप्तांगं धार्यते यच्च स्थान्तः शुद्ध विशुद्धये । तबस्नान व्रतं प्रोक्त जिनरंतमलापहम् ॥१३००।।
अर्थ-यह नग्नत्व गुरण अनेक सर्वोत्कृष्ट गुणों का निधान है, मोम महल का