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मूलाचार प्रदीप ]
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आहार का त्याग किया जाता है उसको परिशेष प्रत्याख्यान कहते हैं ॥२५॥
(६) अध्वगत प्रत्याख्यान का स्वरूप
मार्गाव्याद्विनद्यादिगमनानां प्रतिज्ञा क्रियतेऽशोपवासादि यत्तदध्वगतं स्मृतम् ||२६|| अर्थ - किसी मार्ग में, वन में, पर्वत पर वा नदी आदि के गमन करने में जो उपवास श्रादि की प्रतिज्ञा की जाती है उसको अध्वगत प्रत्याख्यान कहते हैं ||२६|| (१०) सहेतुक प्रत्याख्यान का स्वरूप
उपसर्गनिमित्तं जाते सति विधीयते उपवासाविकं यत्सत्प्रत्याख्यानं सहेतुकम् ||२७||
[ चतुर्थ अधिकार
अर्थ- किसी उपसर्ग श्रादि के निमित्त मिलने पर जो उपवास आदि की प्रतिज्ञा की जाती है उसको सहेतुक प्रत्याख्यान कहते हैं ||२७||
वरण की दृद्धि के लिये लिखित प्रत्याख्यान करना चाहियेप्रत्याख्यानविषैः सारान् दशमेदानिमान् सदा । ज्ञात्वा नाना तपोवृष्या पचरन्तु तपोधनाः ॥ अर्थ-ये ऊपर लिखे हुए प्रत्याख्यान विधि सारभूत दश भेद हैं इन सबको समझकर मुनियों को अपने अनेक प्रकार के चरणों की वृद्धि के लिये इन प्रत्यास्थानों का पालन करना चाहिये ||२८||
त्याग करने योग्य पदार्थ प्रत्याख्यान हैश्रशमपानकखाद्य स्वाद्यं स चतुविधम् । प्राहारं विविधं द्रव्यं सचित्ताचिसमिश्रकम् ||२६|| उपधिः श्रमरणयोग्यः क्षेत्रं कालादयोऽखिलाः इत्याद्यन्यतरं वस्तु प्रत्याख्यातव्यमंजसा ॥३०॥
अर्थ - अन्न, पान, स्वाद्य, खाद्य के भेद से चार प्रकार का आहार है । इनके सिवाय चित्त चित्त मिश्र के मेव से अनेक प्रकार के पदार्थ हैं, मुनियों के अयोग्य अनेक प्रकार के उपकरण हैं, अयोग्य क्षेत्र अयोग्य काल श्रादि सब त्याग करने योग्य प्रत्याख्यान पदार्थ हैं ।। २६-३०।।
किसी द्रव्यसे मिला हुआ सचित्त जल भी अपेय है
मिश्रित पानेोपवासो यातिखंडताम् । सचित्तं न अलं पातु योग्यं तस्मात्त्यजेद्र षः ।। ३१ ।। अर्थ - किसी द्रव्यसे मिला हुआ पानी पीने से उपवास खंडित हो जाता है तथा सचित्त जल भी पीने के अयोग्य है । इसलिये बुद्धिमानों को इन सबका त्याग कर देना चाहिये ||३१||