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मुलाचार प्रदीप ]
( १८१.)
[ चतुर्थ अधिकार
अर्थ- जो उपवास चतुर्दशी के दिन करना है, उसका नियम प्रतिपदाके दिन ही कर लेना प्रतिक्रांत प्रत्याख्यान है ।। १६ ।।
(३) कोटिसहित प्रत्याख्यान का स्वरूप
प्रातः स्वाध्यायसंपूर्ण यदि शक्ति भविष्यति । उपवासं करिष्यामि तत्कोटिस हिसंमतम् ॥२०॥ अर्थ -- प्रातःकाल स्वाध्याय पूर्ण होने पर यदि शक्ति होगी तो मैं उपवास करूंगा इसप्रकार के नियम करने को कोटिसहित प्रत्याख्यान कहते हैं ||२०|| (४) अखंडित प्रत्याख्यान का लक्षा
श्रवश्यं यद्विधातव्यं पक्षमासाविगोचरम् । उपवासादिकं तत्स्यात्प्रत्याख्यानमखंडितम् ।। २१ ।। अर्थ - किसी पक्ष वा किसी महीने में जो उपवास अवश्य किया जाता है उसको खंडित प्रत्याख्यान कहते हैं ॥ २१ ॥
(५) साकार प्रत्याख्यान का वर्णन -
सर्वतोभद्रनक्षत्ररत्नावल्याद्यनेकधा । विधानकरणंयहुधासा कारमंत्रतत् ||२२||
अर्थ - सर्वतोभद्र, नक्षत्रमाला, रत्नावली आदि अनेक प्रकार के विधान वा वृत करना साकार प्रत्याख्यान कहलाता है ॥२२॥
(६) अनाकार प्रत्याख्यान का स्वरूप --- निजेच्छ्योपवासादि करणं यद्विधि विना । प्रत्याख्यानमनाकारं कथ्यते तपस्विनाम् ||२३| अर्थ - बिना किसी विधि के अपनी इच्छानुसार उपवास आदि करना तपस्वियों का अनाकार प्रत्याख्यान कहा जाता है ||२३||
(७) परिणामगत प्रत्याख्यान का लक्षणपापक्षैकमासावि वर्षगोचरम् । करणं स्त्रोपवासादे: परिणामगतं हि तत् ॥ २४ ॥
अर्थ- जो दो दिन का, तीन दिन का, एक पक्ष का एक महीने का था एक वर्ष का उपवास किया जाता है उसको परिणामगत प्रत्याख्यान कहते हैं ||२४|| (८) परिशेष प्रत्याख्यान का लक्षणविधाविलाहार वर्जनं पद्विषीयते । यावज्जीवं स्वसंन्यासे परिशेषं समुच्यते ||२५||
श्रयं - अपने सन्यास मरण के समय जीवन पर्यंत तक जो चारों प्रकार के