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मूलाचार प्रदीप ]
( २०५ )
[ चतुर्थ अधिकार
अर्थ - जो लोंच दो महीने में किया जाता है वह उत्कृष्ट कहलाता है, जो तीन महीने में किया जाता है वह मध्यम कहलाता है और जो चार महीने में किया जाता है वह जघन्य कहलाता है ॥७३॥
चौथे महिने के उल्लंघन का निषेध
तुमासान्तरे लोचः कर्तव्यो मुनिभिः सदा । रागक्लेशादिकोटीभिः पंचमेमासि जातु न ||७४ ।। अर्थ - मुनियोंको चौथे महीने के भीतर ही लोंच कर लेना चाहिये। करोड़ों रोग वा क्लेश होनेपर भी पांचवें महीने में लोंच नहीं करना चाहिये ||७४ ||
केशलोंच की महिमा -
सोचेन प्रकटं बोयं निलिंगं च योगिनाम् । श्रहिंसावत मत्यर्थं कायक्लेशं तपो भवेत् ॥ ७५ ॥ ॥ तथास्य करणेनैव वंशग्यं बद्धतेतराम् । हीयते रागशत्रुरवांगादनिर्ममता परा ॥ ७६ ॥ ॥
अर्थ - केश लोच करने से सुनियों को
होती है
प्रगट
होता है अहिंसा व्रतको वृद्धि होती है और कायक्लेश नामका तपश्चरण होता है। इसके सिवाय इस केशलोचके करने से वैराग्य की वृद्धि होती है, राग, रूप, शत्रु नष्ट होता है और शरीर से होनेवाले निर्ममत्व की अत्यंत वृद्धि होती है ।।७५-७६ ।।
उपवास पूर्वक केशलोंच करने की प्रेरणा
इत्यादिगुण वृद्धयर्थं योगिभिर्लोच एव हि । उपवासविने कार्या न जातुमु नाविकः । ७७॥ अर्थ- - इस प्रकार अनेक गुणों की वृद्धि करने के लिये मुनियों को उपवास के दिन लोच ही करना चाहिये उन्हें मुंडन श्रादि कभी नहीं कराना चाहिये ।
॥७७॥
क्षौर कर्म का निषेध
यतो न काकीमात्रः संग्रहो स्तिमहात्मनाम् । येनात्र कार्यते औरं तस्माल्लोषः कृतीमहान् ॥ ७८ ॥ हिंसा हेतुभयाद्यस्मात्त्रमात्रं न चाश्रितम् । मुनिभिः पापभीतय तेषां लोचोजिनतः ॥ ७६ ॥
अर्थ – इसका भी कारण यह है कि महात्मा मुनियोंके पास सलाई मात्र भी परिग्रह नहीं होता जिससे वह और करले इसीलिये मुनियों को लोच करना ही सर्वोत्कृष्ट माना है । कोई भी अस्त्र रखना हिंसा का कारण है अतएव पापों से डरने वाले मुनि हिंसा के हेतुके भय से कोई प्रस्त्र नहीं रखते । इसलिये भगवान जिनेन्द्रदेव ने मुनियों के लिये लोच ही बतलाया है ।।७८ ७६॥