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मूलाचार प्रदीप]
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[ चतुर्थ अधिकार अर्थ- इस कायोत्सर्ग में विराजमान हुए नहा धीर वीर मुनियोंके महाध्यान के प्रभावसे सिंह व्याघ्र प्रादि क्रूर पशु भी शांत हो जाते हैं और उनके चरणों में पाकर अपना मस्तक मुका देते हैं ।।१।।
इससे करोड़ों विघ्नों के जाल क्षण भरमें नष्ट होते हैंउपसर्ग व्रजाः सर्वे विघ्नादिजालकोटयः । कायोत्सर्गस्थमाहात्म्यावविधटन्ते च तत्क्षणम् ।।१२॥
__अर्थ-इस कायोत्सर्ग में विराजमान हुए मुनियों के माहात्म्य से क्षणभर में ही समस्त उपसर्गों के समूह नष्ट हो जाते हैं और करोड़ों विघ्नों के जाल क्षणभर में कट जाते हैं ॥१२॥
केवल जानकी प्राप्ति भी इसका फल हैकायोत्सर्गेण दक्षाणां केवलज्ञानमाशुभोः । जायतेप्रकट लोकेऽवान्यस्यज्ञानस्यकाकथा ।।६।।
अर्थ-चतुर पुरुषों को इस कायोत्सर्ग के प्रभाव से इसी लोक में शीघ्र ही केवलज्ञान प्रगट हो जाता है फिर भला अन्य ज्ञानोंकी तो बात ही क्या है ॥१३॥
केवलज्ञान रूपी स्त्री वरण करती हैध्यत्सर्ग कुश्तधीरो योधर्मशुक्लपूर्वकम् । प्रत्यासत्या स्वयं हेत्यमुक्तिरामावणोतितम् ॥१४॥
अर्थ-- जो धौर वीर पुरुष धर्मध्यान और शुक्लध्यान पूर्वक कायोत्सर्ग धारण करता है उसपर मुक्तिरूपो स्त्री अत्यंत आसक्त हो जाती है और स्वयं प्राकर उसको वर लेती है ॥१४॥
यह सर्वोत्कृष्ट तप हैकायोत्सर्गरासम्वृष्यं नापरं परमं लपा । उपायस्तत्समो नान्यः कारातिनिकवने ॥११६५॥
अर्थ-इस कायोत्सर्ग के समान न तो अन्य कोई परमोत्कृष्ट तप है और न कर्मरूपी शत्रुओं को नाश करने के लिये अन्य कोई उपाय है ।।११९५।।
इस लप करनेवाले के करोड़ों कर्म जाल नष्ट हो जाते हैंयतो व्युत्सर्गकर्तृणां कर्मनामानि कोटिशः । नश्यति क्षणमात्रेण तमांसि भानुना यथा ॥६६॥
अर्थ- इसका भी कारण यह है कि जिसप्रकार सूर्यके उदय होते ही अंधकार क्षरणनर में ही नष्ट हो जाता है, उसी प्रकार कायोत्सर्ग करने वालों के करोड़ों कर्म जाल क्षणभर में नष्ट हो जाते हैं ।।६६॥