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कायोत्सर्ग के फल का उपसंहार - (मुक्ति प्राप्ति)
इत्यादि प्रवरं चास्य फलंमत्वा शिवार्थिनः । स्ववीर्यं प्रकटीकृत्य सिद्धं कुर्वतु तं सवा ||७|| अर्थ --- इसप्रकार इस कायोत्सर्ग का सर्वोत्कृष्ट फल समझकर मोक्षकी इच्छा करनेवाले मुनियों को मोक्ष प्राप्त करने के लिये अपनी शक्ति प्रगट कर वह कायोत्सर्ग सदा करते रहना चाहिये ||७||
विभिन्न प्रतिक्रमणों में कायोत्सर्ग का काल
कायोत्सर्गस्य चोत्कृष्ठेन वबैंक प्रमाणकम् । भ्रन्तर्मुहूर्तमात्रं स्याज्जघन्यं कालसंख्यया ||६८ मध्यमेन तयोर्मध्येप्रमाणं बहुधाभवेत् । अहोरात्रादिपक मास द्वित्र्यादिगोचरम् ।।१६।। १२०० ।। अर्थ - इस कायोत्सर्ग का उत्कृष्ट काल एक वर्ष है और जघन्य काल अंतमुहूर्त है तथा मध्यका जो एक दिन, एक रात एक पक्ष, एक महीना, दो महीना, तीन महीना, छह महीना श्रादि काल है वह सब कायोत्सर्ग का मध्यम काल गिना जाता है ।।६६-१२०० ॥
मूलाचार प्रदीप ]
[ चतुर्थ अधिकार
श्वासोच्छ्वासपूर्वक कायोत्सर्ग विधि-
सत्प्रतिक्रमणे वोरभक्तोवेव सिकाभिधे । कायोत्सर्गे स्याटुच्छ्वासा भ्रष्टोलर शतप्रभाः । १२०१ ॥ उच्छ्वासारात्रिके कार्याश्चतुः पंचाश एव च । परमेष्ठिपदोच्चारः शतानि त्रीणि पाक्षिके ।। उच्छ्वासानां च चातुर्मासिके चतुःशतानि वै । शतानि पंच सांवत्सरके स्युः नियमात्सताम् ॥ वीरभरि बिना शेषसिद्धभवस्था विषुस्फुटम् । सर्वेषुस्युरन्तनुसमें उच्छवासाः सप्तविंशतिः ।।
अर्थ - श्रेष्ठ प्रतिक्रमण करते समय, वीरभक्ति करते समय और वैयकि store में एकसौ घाठ उच्छ्वासों से छत्तीस बार नमस्कार मंत्र पढ़ना चाहिये । रात्रि के कायोत्सर्ग में चौवन श्वासोच्छ्वासों से अठारह बार नमस्कार मंत्र पढ़ना चाहिये । पाक्षिक कायोत्सर्ग में तीनसौ उच्छ्वासों से परमेष्ठी वाचक पदोंका उच्चारण करना चाहिये अर्थात् सौबार नमस्कार मंत्र पढ़ना चाहिये । चातुर्मास कायोत्सर्ग में
सौ श्वासोच्छ्वासोंसे नमस्कार मंत्र पढ़ना चाहिये और वार्षिक कायोत्सर्ग में पांच उच्छ्वासों से पंच नमस्कार मंत्र पढ़ना चाहिये । वीरभक्ति के बिना शेष सिद्धभक्ति आदि में जो कायोत्सर्ग किया जाता है वह सत्ताईस श्वासोच्छ्वास से करना चाहिये ।
।।१२०१ -१२०४॥
व्रत शुद्धि के लिये कायोत्सर्ग की आवश्यकता --
प्रारिहिसानुस्तेया ब्रह्मोयधिप्रसंगतः । सम्महातपंचानां जातातिचारशुद्धये ||१५||