________________
मूलाचार प्रदीप]
( १९१}
[ चतुर्थ अधिकार हैं चतुर पुरुष उन्हीं को शुद्ध करने के लिये कायोत्सर्ग करते हैं । इसीलिये व्रतादिकों में दोष लगना कायोत्सर्ग का कारण समझना चाहिये ।।८२-८४॥
पुनः कायोत्सर्ग के कारणदई रा उपसर्गा ये नक्षेवादि कता भवि सः परोषहा घोरामहन्तस्तपसादयः ।।५।। कायोत्सर्गेण तान्विश्वान्सद्दे हैं मुक्तिहेतवे । इत्यादि कारणनित्यं कुमंतु मुनयोऽत्र तम् ।।१६।।
अर्थ- इस संसार में मनुष्य वा देवों के द्वारा किए हए जितने भी दुर्धर उपसर्ग हैं, जितनी घोर परिषह हैं और जितने महान् तपश्चरण है उन सबको मैं मोक्ष प्राप्त करने के लिये कायोत्सर्ग धारण कर सहन करूंगा, यही समझकर वा इन्हीं कारणों से मुनियों को प्रतिदिन कायोत्सर्ग धारण करना चाहिये ।।८५-८६।।
कायोत्सर्ग का फलकायोत्सर्गे कृते यदवदंगोपांगाविसंधयः । नियन्ते सुधियां तप कर्माणि भणेक्षणे ॥७॥
अर्थ---कायोत्सर्ग के करने में जिस प्रकार अंग उपांग को संधियां भिन्न-भिन्न होती हैं उसी प्रकार बुद्धिमानों के कर्म भी क्षण-क्षण में नष्ट होते रहते हैं ॥७॥
कायोन्सर्ग से ऋद्धियों की प्राप्तिकायोत्सर्गप्रभावेन जायन्तेहिमहर्षयः । समस्ता अधिरेणषयोगिनां नात्र संशयः ।।।।
अर्थ-इस कायोत्सर्ग के प्रभाव से मुनियों को बहुत ही शीघ्र समस्त महा ऋद्धियां प्राप्त हो जाती हैं इसमें किसी प्रकार का संदेह नहीं है ॥८॥
____ कायोत्सर्ग से शुभध्यान की प्राप्तिधर्मशुक्लशुभाध्याना: शुभाःलेश्याः प्रयान्यहो । कायोत्सर्गरण धर्मात्मनां सर्वोकृष्ठतामिह ।।६।।
अर्थ-इस कायोत्सर्ग के प्रभाव से धर्मात्मा पुरुयोंके धर्मध्यान वा शुक्लध्यान तथा शुभ लेश्याऐं सर्वोत्कृष्ट अवस्था को प्राप्त हो जाती हैं ॥८६॥
___ कायोत्सर्ग के प्रभाव से इन्द्रों के पासन कंपायमान हो जाते हैंप्रपन्ते सुरेशानामासनादि क्षयान्तरे । महाघ्यानप्रभावन कायोत्सर्गस्थयोगिनाम् ||६||
अर्थ-कायोत्सर्ग में विराजमान हुए मुनियों के महाध्यानके प्रभाव से क्षणभर में ही इंद्रों के प्रासन कंपायमान हो जाते हैं 100
इसके फलो क्रुर व्याघ्रादि भी शांत हो जाते हैंव्याघ्रसिंहादयः कूरा शाम्यन्ति नतमस्तकाः कायो:सर्गस्यधीराणां महायोपप्रभावतः ॥११॥