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मूलाचार प्रदीप ]
( १८७)
[ धनुर्थ अधिकार करने के लिये जो कायोत्सर्ग किया जाता है उसको क्षेत्र कायोत्सर्ग कहते हैं ।।५।।
कार कायोत्सर्ग का लक्षणऋत्वहोरात्रवर्षादि च्याप्तकालोन वस्य यः । दोषस्यहानये कायोत्सर्गः स कालसंज्ञकः ॥५८।।
अर्थ-ऋतु दिन रात और वर्षाऋतु प्रादि किसी भी काल से उत्पन्न हुए दोषों को नाश करने के लिये जो कायोत्सर्ग किया जाता है उसको काल कायोत्सर्ग कहते हैं ।।५।।
भाव कायोत्सर्ग का स्वरूपमिथ्यासंयमकोपादियुक्तदुर्भावजस्य य: । दोवस्यशुद्धये कायोत्सर्गः सभावनामकः ॥५६|
अर्थ--मिथ्यात्व, असंयम और क्रोधादिक दुर्भावोंसे उत्पन्न हुए दोषों को दूर करने के लिये जो कायोत्सर्ग किया जाता है वह शुभभाव कायोत्सर्ग कहलाता है ।। ५६ ।
छहों प्रकार के कायोत्सर्गों को करेंप्रमीभिःषड्विधःसार निक्षेपमुनिसत्तम। कायोत्सर्गः सदाकार्यों जातदोषविशुद्धये ॥६॥
अर्थ–उत्तम मुनियों को उत्पन्न हुए दोषों को विशुद्ध करने के लिये सारभूत इन छहों निक्षेपों से होनेवाला कायोत्सर्ग सदा करते रहना चाहिये ॥६०॥
___ कायोत्सर्गादि के कथन की प्रतिज्ञाकायोत्सर्गरच कायोत्सर्गोकायोत्सर्गकारणम् । अभीषां त्रितयानांहि प्रत्येक लक्षणं वे ।।१।।
__ अर्थ-अब प्रामे कायोत्सर्ग, कायोत्सर्गी और कायोत्सर्ग के कारणों का अलग-अलग लक्षण कहते हैं ॥६१॥
कायोत्सर्ग का स्वरूपवाह्यान्तः सकलैः संगैः समं कायस्य धोधनः । नियते यः परित्यागः कायोत्सर्गः समुक्तये ॥६२।।
अर्थ-जहांपर बुद्धिमानों के द्वारा बाह्य और आभ्यंतर समस्त परिग्रहों के साथ-साथ शरीर का भी त्याग कर दिया जाता है परिग्रह और शरीरके ममत्व सर्वथा स्याग कर दिया जाता है उसको कायोत्सर्ग कहते हैं । ऐसा कायोत्सर्ग मोक्ष देनेवाला होता है ॥६२।।
कायोत्सर्ग के ४ भेद हैंप्रालंषितभुजः पादांतश्चतु:स्वांगुलाश्रितः । सर्वाग चलनातीतः कम्यतेत्र चतुर्विषः ॥६३।।