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मूलाचार प्रदीप ]
[ तृतीय अधिकार अर्थ-जो अपनी कमर से कमछप के समान चेष्टा करता हआ बंदना करता है उसके कच्छपरिगत नामका दोष लगता है ॥७॥
मत्स्योद्वत्त दोषमत्स्यस्यैव कटीभारोहतनं स विधाय या बंदना वा द्विपार्वेन मत्स्योद्वतः स उच्यते ॥८॥
अर्थ--जो मछलीके समान अपनी कमरको ऊंची निकालकर वंदना करता है अथवा जो दोनों बगलोंसे वंदना करता है उसको मत्स्योद्वर्त नामका दोष लगता है ।।६।।
__ मनोदुष्ट नामका दोषदुष्टो भूत्वा हृदाचार्यादीनां क्लेशमुतेन वा विषयः क्रियाकर्म समनोदुष्टदोषभाक् ॥६॥
अर्थ-जो मुनि आचार्यों को क्लेश पहुंचा कर वा प्राचार्यों के प्रति अपने मनमें कुछ दुष्टता धारण कर बंदना करता है उसको मनोदष्ट नामका दोष लगता है ॥६॥
वेदिकावद्ध दोषवेदिकाकारहस्ताम्यां वध्वा जामुवयंस्वयम् । बंबनाकरगं यत्सर्वेविकावद्धसंशयः ॥१०।।
अर्थ-जो बेबी के आकारके अपने दोनों हाथों से दोनों जंघाओं को बांधकर वंदना करता है उसको वेदिकावड नामका दोष लगता है ॥१०॥
भय नामक दोषमरमादिभयभीतो यः भवत्रस्तोभयेन था। करोति वंदना सस्य भयवोधोत्रजायते ॥११॥
अर्थ-जो मृत्यु प्रादि के भयसे भयभीत होकर अथवा किसी भयसे त्रस्त होकर वंदना करता है उसको भय नामका दोष लगता है ॥११॥
विभ्य नामक दोषपरमार्थातिगामस्य गुर्वाविम्योत्रविभ्यतः । बनाकरणं यत्सविम्मदोषोऽशुभप्रदः ॥१२॥
अर्थ-जो अज्ञानी मुनि परमार्थ को न जानसा हुआ गुरुसे डर कर वंदना करता है उसके अशुभ उत्पन्न करनेवाला विभ्य नामका दोष लगता है ॥१२॥
ऋद्धि गौरव दोष--- चातुर्वणंसुसंधेभ्योभक्ति कोत्यादिहेतवे । पंदना यो विधसे स ऋद्धिगौरवदोषवान् ॥१३॥
अर्थ-जो मुनि चारों प्रकारके संघसे भक्ति वा कोति बाहने के लिये वंदना