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मूलाचार प्रदीप
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[ तृतीय अधिकार फिर मनमें परम वैराग्य धारण करते हुए सन्यास प्रहण करना चाहिये । फिर श्रुतभक्ति और आचार्यभक्ति पढ़कर उत्तम स्वाध्याय को ग्रहण करना चाहिये और अंतमें श्रुतभक्ति पढ़कर उस स्वाध्याय को समाप्त करना चाहिये ।।६१२-६१३।।
सन्यास धारण करने पर क्या करें--- स्वाध्यायग्रहणे ज्ञेयाः संन्यासस्य महामुनेः । महाश्रुतमहावार्थमहाश्रुतास्य भक्तपः ॥१४॥
अर्थ-सन्यास धारण करनेवाले महामुनि को स्वाध्याय ग्रहण करते समय महा श्रुतभक्ति, महा प्राचार्यभषित और महाश्रुतभक्ति पढ़नी चाहिये ।।१४।।
प्रतिदिन तीनों कालों में प्रतिक्रमगादि भक्तिसत्प्रतिक्रमणे कार्या त्रिकालगोचरेन्वहम् । सिद्धभफिरततो भक्तिः प्रतिक्ष्मणसंजका ॥६१५॥ निष्ठितफरणाद्यत श्रीरभक्तिस्वसंपतः । चतुर्विशतितीर्थकरभक्तिमलहानये ।।६१६॥
अर्थ-प्रतिदिन तीनों कालों में होनेवाले प्रतिक्रमसमें सिद्धभक्ति प्रतिक्रमण के अंतमें धीरभक्ति और दोष दूर करने के लिये चतुविशति तीर्भकर भक्ति करनी चाहिये ।।६१५-६१६॥
___चारित्र को शुद्ध करनेवाली भक्तियों का पाठ करेंपाक्षिकास्ये व चातुर्मासिकसजेऽषघातके । सत्प्रतिक्रमणेसारे सांथस्सरिफनामनि ६१७।। पाचौ श्रीसिद्धचारित्रप्रतिक्रमण भक्तयः । श्रीनिष्ठिसकरणादि वीरभक्सिसमाह्वयः ॥१८॥ चतुविशलितीर्थकरभक्तिः शुभवायिनी । चारित्रालोचनाचार्यभरिक्तश्चारित्रशुद्धिा ।।१६।। पहबालोधनाचार्यभक्तिमलविनासिनी । शुल्लकालोचनाचायंभक्तिः शुद्धिकरोतिमा 18२०॥
___ अर्थ-पापों को नाश करनेवाले पाक्षिक प्रतिक्रमणमें चातुर्मासिक प्रतिक्रमण में और सारभूत वार्षिक प्रतिक्रमण में पहले सिद्धभक्ति और धारिप्रभक्ति करनी चाहिये फिर प्रतिक्रमण भक्ति पढ़नी चाहिये प्रतिक्रमण समाप्त होने पर वीरभक्ति और शुभ देनेवाली चतुर्विशति तीर्थकर भक्ति पढ़नी चाहिये फिर चारित्रको शुद्ध करने वाली चारित्रालोचना आचार्यभक्ति पढ़नी चाहिये । तदनंतर दोष दूर करनेवाली बृहत् आलोचना और प्राचार्यभक्ति पढ़नी चाहिये अंत में शुद्धि करनेवाली लघु आलोचना और लघु प्राचार्यभक्ति पढ़नी चाहिये ॥६१७-६२०॥
आचार्य भक्ति दोष हरण करनेवाली हैचारित्रालोचनाचार्य भक्तिभक्तिविधायिनी । बदालोचनाचायं भक्तिदोषापहारिणी ॥२१॥