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मूलाचार प्रदीप]
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[ तृतीय अधिकार चैत्यभक्तिमहा पंचगुरुभक्तिः प्रयत्नतः । शांतिभक्ति बिधातव्या विधिना विधिहानये ॥६॥
अर्थ-स्थिर प्रतिमा के चतुर्थ अभिषेक के दिन सिद्धभक्ति, चारित्रभक्ति, आलोचना, चैत्यभक्ति, पंचमहागुरुभक्ति और शांतिभक्ति विधिपूर्वक कर्मों को नाश कप के लिये परमपूर्वाश पड़नी चाहिये ।।८८९-६०॥
चल प्रतिमा के चतुर्थ अभिषेक के दिन कोनसी भक्ति पड़ें? चलाहरप्रतिमायाश्च मुवाकार्याबूधोत्तमः । सिद्धर्चत्यमहापंचगुरुशान्तिमुभक्तयः ।।८९१ ।
अर्थ-बुद्धिमान पुरुषों को चल अरहंत प्रतिमा के चतुर्थ अभिषेक के दिन प्रसन्नतापूर्वक सिद्धभक्ति, चैत्यभक्ति, पंचमहागुरुभक्ति, शांतिभक्ति पड़नी चाहिये । ८६१॥
गामान्य मुनियों की बदना कैसे करें ? महत्तपः पदासढसामान्यर्षे प्रवंदना । सिक्ति विधायोच्चभक्त्या कार्यान्यसंयतः ॥१२॥
अर्थ-जो सामान्य मुनि उन-उन तपश्चरण करनेवाले हैं उनकी वंधना करने के लिये अन्य मुनियों को भक्तिपूर्वक सिद्धभक्ति पढ़कर वंदना करनी चाहिये ।।८६२।।
सिद्धांत के जानकार मुनियों की वंदना कैसे करें ? सिद्धांतवेदिनां सिद्धश्रुतभक्तिद्वयं भवेत् । प्राचार्याणां हि सिद्धाचार्यभक्ति भवतो नुतौ १८६३॥
अर्थ-सिद्धांत के जानने वाले मुनियों की वंदना करते समय सिद्धभक्ति और श्रुतभक्ति पढ़नी चाहिये । तथा प्राचार्यों की वंचना करने के लिये सिद्धभक्ति, प्राचार्यभक्ति पढ़कर नमस्कार करना चाहिये ॥८६३।।
यदि प्राचार्य सिद्धांत के जानकार हो तो भक्ति कैसे करें ? सिद्धांतवेवि सूरीणां ववमामां मुशिष्यकः । कर्तग्या विधिना सिवश्रुताचार्यात्यभक्तयः ।।४।।
अर्थ-यदि वे प्राचार्य सिद्धांतके जानकार हों तो उनके शिष्योंको विधिपूर्वक सिद्धभक्ति, श्रुतभक्ति और आचार्यभक्ति पड़नी चाहिये ।।८६४॥
प्रतिमा योग धारण करनेवालों को भक्ति कैसे करें ? पुनेलंघीयसोपि प्रतिमायोगस्थितस्य च । महतस्तपसो भवस्थाप्रणामे परसंयतः ॥८९५|| ध्यात्वा युक्तितः सिद्धयोगशास्यास्यभक्तयः । तथा प्रदक्षिणा कार्या योगभवत्यातिभास्तिकः ।।
अर्थ-यदि कोई मुनि छोटे हों किंतु प्रतिमा योग धारण कर खड़े हों तो