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मुलाधार प्रदीप]
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[ तृतीय अधिकार कृतिकर्म के २ भेदनित्यनैमितिकाभ्यां तस्कृतिकम विधोच्यते । एक बहुभेदं च कर्मघ्नं शिवकारणम् ।।८७७॥
अर्थ- उस कृतिकर्म के दो भेद हैं एक प्रतिदिन होने वाला कृतिकर्म और दूसरा किसो निमित्तसे होनेवाला कृतिकर्म । इनमें भी एक एक कृतिकर्म के अनेक भेद हैं जो कर्मोको नाश करनेवाले हैं और मोक्ष के कारण हैं ।।८७७॥
नित्यकर्म पापों का नाश करनेवाला हैत्रिकालवंदना योग सत्प्रतिक्रमणादिकम् । प्रत्यहं क्रियते यत्तनित्यकर्माघनाशकम् ॥८७८॥
__ अर्थ-जो प्रतिदिन त्रिकाल वंदना की जाती है, योग धारण किया जाता है वा श्रेष्ठ प्रतिक्रमण किया जाता है उसको नित्यकर्म कहते हैं । यह नित्यकर्म भी पापों को नाश करनेवाला है ।।८७८॥
नमित्तिक कृतिकर्म का स्वरूप-- प्रष्टम्यां च चतुर्दश्यां पक्षपर्व विनादिषु । विधीयते क्रियाकर्म यतन्नैमित्तिकं परम् ।।७६
अर्थ-अष्टमी के दिन चतुर्वशी के दिन पक्ष पूरा होनेपर वा अन्य किसी पर्व के दिन जो क्रिया कम किया जाता है उसको नैमित्तिक कृतिकर्म कहते हैं ।।७।।
कौनसी भक्तिय करनी प्रावश्यक हैंनिकालवंशमायां च विधेमा भक्तिकः सदा । त्यभक्तिस्तत. पंचमुरुभक्तिबिधानतः ।।८०॥
अर्थ-त्रिकाल बंदना में भक्त पुरुषों को विधि पूर्वक सदा चैत्यभक्ति और पंचगुरुभक्ति बोलनी चाहिये ॥१०॥
___चतुर्दशी के दिन की भक्तियांचतुर्वशोबिने सिद्धपत्यश्रुत्ताख्य भक्तपः । भक्ति। पंचगुरूणां धीशांतिभक्तिस्तप्तोतिमा ॥१॥
अर्थ-चतुर्दशी के दिन सिद्धभक्ति, चैत्यभक्ति, श्रुतभक्ति, पंचगुरुभक्ति और शांतिभक्ति बोलनी चाहिये ॥५१॥
अष्टमी को भक्तियांअष्टमीदिषसे सिद्धश्रुतचारित्र भक्तपः । चैत्यभक्ति स्ततः पंचगुरुशांति समाप्ये ।।८१२॥
अर्थ-अष्टमी के दिन सिद्धभक्ति, श्रुतभक्ति, चारित्रभक्ति, चैत्यभक्ति, पंचगुरुभक्ति और शांतिभक्ति बोलनी चाहिये ।।८८२॥