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मूलाचार प्रदीप
द्वितीय अधिकार अर्थ---यदि कोई मनुष्य अपने सामने ही किसी जीवको मार डालें तो उन मुनियों को 'जीववध' नामका ११वां अंतराय होता है। यदि काक आदि पक्षो मुनिके हाथसे आहार के पिंड को अपहरण कर लें तो (१२) पिंडहरण' नामका अन्तराय होता है ।।५४५।।
(१३) हस्तात् पिंडपतन तथा {१४) पाणिपात्रे जंतुबध अन्तराय का लक्षणग्रासमात्रं पतेद्हस्तात, भुजानस्य घलेयदि । मियते स्वयमागत्य, पाणी अंतुश्च पापतः ॥५४६।।
अर्थ- यदि पाहार करते हुये, मुनि के हाथ से एक ग्रास के समान आहार गिर आय तो उनके (१३) 'पिंडपतन' नामका अंतराय होता है। यदि पाप कर्मके उदय से कोई जीव स्वयं आकर मुनिके हाथपर मर जाय तो उनके 'पाणिपात्रे जंतुयध' नामका १४वां अंतराय होता है ॥५४६॥
(१५) मांस दर्शन व (१६) उपसर्ग नामक अन्तराय - पश्ये यदि प्रमादेन, मांसाधीन संयतोऽशुभान्। योगिनो यदि जायेतोपसर्गो, नसुरादिजः ।।५४७।।
___ अर्थ-यदि मुनि अपने प्रमादसे मांसादिक अशुभ पदार्थों को देखलें तो 'मांस दर्शन' नामका १५वां अंतराय होता है, यदि उन मुनि के ऊपर कोई मनुष्य देव या तिथंच उपसर्ग करे तो उनके 'उपसर्ग' नामका १६वां अंतराय होता है ॥५४७।।
(१७) पादान्तर पंचेन्द्रिय जीव गमन तथा (१८ भाजन संपात नामक अन्तराय-- पादयोरन्तरे गमछे, ज्जीवः पंचेन्द्रियो मुनेः । पारिवेषकहस्तादेः, भजिनं च पतेद्यदि ।।५४६।।
___ अर्थ-यदि मुनिके दोनों पैरों के मध्यमें से कोई चहा आदि पंचेंद्गिय जीव निकल जाय तो उनके पादान्तर पंचेंद्रिय जीव गमन' नामक १७या अंतराय होता है । यदि दान देने वाले के हाथ से कोई बर्तन गिर जाय तो उन मुनिके प्राहार में (१८) 'भाजनसंपात' नामका अंतराय होता है ॥५४॥
(१६) उच्चार (२०) प्रसवण (२१) प्रभोज्य गृह प्रवेश अन्तरायों का वर्णन-- वेडुच्चार एवोदशश्व, मूत्रादिकं यतेः । प्रवेशो यदि जायेत, चांडालादि गृहास्य च ॥५४६।।
अर्थ-यदि मुनि के उदर से मल निकल पावे तो (१६) 'उच्चार' नामका अंतराय होता है। यदि मूत्र निकल पड़े तो (२०) 'प्रस्रवण' नामका अंतराय होता है
यदि आहार के लिये फिरते हुए मुनि किमी धांडालाविक के घर में प्रवेश कर जांय तो - उनके (२१) 'प्रभोज्य गृह प्रवेश' नामक अंतरराय होता है ।।५४६।।