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मूलाचार प्रदीप ]
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[तृतीय अधिकार तथा चारों गतियोंमें उत्पन्न होनेवाले महा दुःख भोगने पड़ते हैं । इसके सिवाय दुर्बुद्धि को धारण करनेवाले जो पुरुष अपनी इन्द्रियोंको नहीं जीतते हैं उनका मन सदा चंचल बना रहता है । ऐसी अवस्थामें उनका ब्रह्मचर्य व्रत कभी नहीं टिक सकता तथा बिना ब्रह्मचर्य के व्रत और तपश्वा भी नहीं छहर सकते ६१-६२।।
राग घटाने के लिये चक्षु इन्द्रिय का निरोधमस्येति विश्वयानेन चक्षुरोध सुधीषनाः । रागहान्य प्रकुर्वतु ब्रह्मभंगादिशंकया ॥६२१॥
अर्थ-यही समझकर बुद्धिमान पुरुषों को अपना राग घटाने के लिये तथा ब्रह्मचर्य उसके भंग होनेकी आशंका से पूर्ण प्रयत्न के साथ चक्षु इन्द्रिय का निरोध करना चाहिये ।।६२१॥
मोक्षार्थी के लिये चक्षु इन्द्रिय का निरोध अन्यन्त आवश्यक हैसर्वानर्थकरं च रागजतकं प्रक्षुभ्रंमद्भतले ।रोपित्याशु वधा निरोधनगुणे मोक्षार्थसिद्धये । स्यमुक्तक विधं कुकर्महतकं अर्भाकर यत्नतः कुवध्वं सफलं गुणाम्बुधिमिमं चक्षुनिरोधं सदा ।।
अर्थ-समस्त संसार में परिभ्रमण करते हुए ये चक्षु समस्त अनयों को करने वाले हैं और राग को बढ़ाने वाले हैं । इसलिये बुद्धिमान पुरुषों को मोक्षरूपी पुरुषार्य को सिद्ध करने के लिये अपनी इन्द्रियों को रोकने रूप गुणसे चक्षु इन्द्रिय का निरोध करना चाहिये । और चनिरोध नामके गुण को सदा के लिये धारण करना चाहिये । यह चक्षुनिरोष नामका गुण स्वर्गमोक्ष का एक अद्वितीय कारण है, अशुभ कर्मोका नाश करनेवाला है धर्मका खजाना है और गुणों का समुद्र है । इसलिये प्रयत्न पूर्वक इसका पालन करना चाहिये ।।६२२॥
सातों प्रकार के शब्दों को राग सहित नहीं सुनना
श्रोत्र इद्रिय निरोध है--- वर्षभौ च गांधारो धैवतो मध्यमः स्वरः । पंचमात्यो निषाव सप्त शम्दाजीवजा इमे ।।६२३॥ एतेषो जीवशब्दानां वीणायचेतनात्मनाम् । रागेरणाश्रवणं यरसः भोवरोधोयहामिफत् ॥६२४।।
___ अर्थ-पङ्ग, ऋषभ, गांधार, धैवत, मध्यम, पंचम और निषाद ये जीवों से उत्पन्न होनेवाले सात प्रकारके स्वर हैं । जीवों से उत्पन्न हुए इन शब्दों को तथा वीणा आदि अचेतन पदार्थों से उत्पन्न हुए शब्दों को राग पूर्वक सुनना श्रोत्र निरोध नामके गुण को हानि पहुंचाने वाला है ॥६२३-६२४॥