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मूलाचार प्रदीप ]
( १२८ )
[तृतीय अधिकार विघ्न नष्ट हो जाते हैं पाप नष्ट हो जाते हैं और रोगादिक सम नष्ट हो जाते हैं । ॥७८३॥ तीर्थकरों का नाम उच्चारण करने का महाफल
७८४ जायते च परं पुण्यं जिनकधादिभूसिवम् । धर्मार्थाश्व सिध्यन्ति होकन्तेत्रिजगच्छ्रियः ॥
प्रर्थ-इसके सिवाय तीर्थंकरों का नाम उच्चारण करने से तीर्थकर चक्रवर्ती आदि की विभूति को देनेवाला पुष्य प्राप्त होता है, धर्मादिक चारों पुरुषार्थ सिद्ध हो जाते हैं और तीनों लोकों को लक्ष्मियां प्राप्त हो जाती हैं ॥७८४॥
नाम स्तवन का स्वरूप-- इत्यादि नाममहात्म्य वर्णनर्या बिघीयते । स्तुति नामभिचाष्टाप्रसहस्रप्रणामकः ॥७८५॥ वर्तमान चतुविशति सीरवर मामभिः । स्तवः सकथ्यते सद्धिधर्ममूलोऽशुभान्तकः ।।७८६॥
अर्थ-इसप्रकार भगवान के नामों का माहात्म्य वर्णन कर जो स्तुति की जाती है अथवा एक हजार आठ नाम पढ़कर जो स्तुति की जाती है उनको एक हजार पाठ प्रणाम किये जाते हैं अथवा वर्तमान चौबीस तीर्थंकरों के नाम पढ़कर जो स्तुति की जाती है उसको धर्मका मूल और शुभ वेनेवाला नाम स्तवन कहते हैं ॥७८५-७८६॥
__ स्थापना स्तवन का स्वरूपकृत्रिमाकृतिमारणां च मूर्तीनां तीर्थकारिणाम् । पूजास्तुतिनमस्कारः क्षीयन्ते विघ्नराशयः ।। सतो सम्पद्यते पुण्यं परं धार्मककारणम् । विश्वाभ्युदयकल्याणा जायन्ले व पदेपरे ॥७८८॥ इत्यादिस्थापनास्तुत्या तीर्थयात्सवमंचयत् । शिवाय क्रियते विद्भिःसस्थापनाभिधःस्सवः ॥
अर्थ- इस संसार में तीर्थंकरों की जो कृत्रिम वा अकृत्रिम प्रतिमायें हैं उनको पूजा स्तुति का नमस्कार करने से सज्जनों के समस्त विध्न नष्ट हो जाते हैं । परम कल्याणोंका कारण ऐसा पुण्य प्राप्त होता है और क्षण भणमें सब तरहके अभ्युदय और कल्याण प्राप्त होते हैं इसप्रकार विद्वान् लोग मोक्ष प्राप्त करने के लिये स्थापना निक्षेप से स्थापित की हई तीर्थकर को प्रतिमा को स्तुति करते हैं उसको स्थापना स्तव कहते हैं ॥७८७-७८६॥
द्रव्य स्तवन का स्वरूपदिव्यौदारिकबेहाना कोटीनेभ्योखिलाहताम् । विश्वमेत्रप्रियाणां सौम्यानामधिकतेजसाम् ॥ श्वेतपोतादिसवर्ण स्तवनं यत्सुकान्तिभिः। मिष्पायते च शास्त्रः साध्यस्तव एवहि ॥७६१ ।।