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मुलाचार प्रदीप ]
( १४० )
[ सूतीय अधिकार
तथा दर्शन विनय, ज्ञान विनय, चारित्र विनय, तप विनय और उपचार विनय ये पांच उसके मेद हैं || ८५८६ ।।
दर्शन विनय का लक्षण -
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यथाविश्वे पदार्था येवोपदिष्टा जिनोत्तमैः । तेषां तथैव श्रद्धानं यद्दृष्टिबिनयोहि सः ॥८६॥ अर्थ - भगवान जिनेन्द्रदेव ने समस्त पदार्थों का स्वरूप जैसा बतलाया है उनका उसी रूपसे श्रद्धान करना दर्शन विनय कहलाती है ।। ६५६||
दर्शन विनय का फल -
सम्यक्त्वविनयेनात्र सम्यक्त्वं चन्द्रनिर्मलम् । सोपा मंसिरप बह
अर्थ -- इसप्रकार सम्यग्दर्शनका विनय करने से चन्द्रमाके समान निर्मल और मुक्तिलक्ष्मी राजभवनकी पहली सीढ़ी ऐसा महान् सम्यग्दर्शन प्राप्त होता है ॥६६०।। ज्ञान विनय का लक्षण
कलाष्टविध्वाचार: पठन पाठनं च यत् । योगसुद्धघासुशास्त्राणां स ज्ञानविनयोऽद्भ सः ॥
अर्थ - मन-वचन-कायको शुद्धकर कालाचार, शब्दाधार, प्रर्थाचार, शब्दार्थावार, विनयाचार, उपाधनाचार, मानाचार, अनिलवाचार हम आठों आचारों के साथ साथ श्रेष्ठ शास्त्रों का पठन-पाठन करना सर्वोत्तम ज्ञानविनय कहलाता है ।।८६१॥ ज्ञान विनय का फल केवलज्ञान है
सज्ञान विनयेनाहो जायते ज्ञान लोचनम् । त्रिजगदर्पणसातू सर्वविद्यादिभिः सताम् ॥९६२॥ अर्थ - इस श्रेष्ठ ज्ञानविनय से सज्जन पुरुषों के समस्त विद्याओं के साथ-साथ वर्षण के समान तीनों लोकों के स्वरूप को दिखलाने वाला केवलज्ञान प्रगट होता है । ॥८६२॥
चारित्र विनय का स्वरूप
त्रयोदशविधेः वृत्तपालने वृत्तशालिभिः । उत्साहो योऽनुरागश्च चारित्रचिनयोऽत्रसः ॥८६३।। अर्थ — चारित्र पालन करनेवालों का तेरह प्रकार के चारित्र पालन करने में जो उत्साह वा अनुराग है उसको चारित्र विनय कहते हैं ||८६३||
इसका फल यथाख्यात चारित्र है
चारित्र विनये मात्र केवलज्ञान कारणम्। विश्वसौख्याकरं बलं यचाख्यातं न भवेत् ।। ६४ ।।
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