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मूलाचार प्रदीप ]
( ११२ )
[ तुतीय अधिकार
अर्थ - यह जिल्ला इन्द्रिय चार अंगुल प्रमाण है तथापि अनेक दुःख और दुर्गतियों को देनेवाली । इसी प्रकार अत्यंत दुष्ट कामेन्द्रिय भी चार अंगुल प्रमाण है और अत्यंत अजेय है ||६६६ ||
दोनों इन्द्रियों के द्वारा प्राणी बहुत दुःख भोगते हैं
ऐभिरष्टगुलोपर्स दोर्ष जीवाः कथिताः । प्रकुर्वन्ति महापापं लभन्ते युः खमुल्बणम् ||६८६ ।। अर्थ - इन आठ अंगुल प्रमारण दोनों इन्द्रियों से उत्पन्न हुए दोषों के द्वारा कथित हुए बुःखी हुए जीव महा पाप उत्पन्न करते हैं और फिर घोर दुःखों को भोगते
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जो इन दोनों को जीत लेते हैं उनके सब इन्द्रियां वश में हो जाती हैंइदं कामेन्द्रियं युग्मं निर्जितं यैस्तपो धर्मः । तेषां शेषेन्द्रियाण्याशु वशं यान्ति हृदा समम् ||६६०॥ अर्थ -- जो जीव अपने तप और संथमके द्वारा स्पर्शनेन्द्रिय और जिह्वा इंद्रिय इन दोनों कामेन्द्रियों को जीत लेते हैं उनकी बाकी की समस्त इंद्रियां भी हृदय के साथ-साथ बहुत शीघ्र यशमें हो जाती हैं ॥६०॥
रस व्याग द्वारा ये दोनों इन्द्रियां जीती जा सकती हैं
विज्ञायेति रसत्याग तपोभिरतिदुष्करः । जयन्तु मुनयो येवं स्वासयुग्मं शिवाप्तये ॥ ६६१॥ अर्थ – यही समझ कर मुनियों को मोक्ष प्राप्त करने के लिये अत्यंत कठिन ऐसे रस त्याग नामके तपश्चररण से ये दोनों इन्द्रियां वशमें करनी चाहिये ।।६६१ ॥
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ये पांचों इन्द्रियां बड़ी ठग हैं तथा अंतरंग शत्रु हैं
पंचेन्द्रियगा एते वैरिणोभ्यंतरंगजाः । सम्यग्दग्ज्ञानवृत्तावि रस्नात्यपहरन्ति तुः ||६६२ ॥ अर्थ -- ये पांचों इंद्रियां बड़ी ठग हैं और इस जीवको अंतरंग शत्रु हैं । तथा मनुष्यों के सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्ररूपी रत्नोंको चुरा लेती है ॥६६२॥ ये इन्द्रिय रूप मोक्षफल देनेवाले अमृत फलको नष्ट कर देती हैपुंसामुन्मूलयंत्यत्रादत्तमुक्ति सुधाफलम् ||६९३ ॥ अर्थ- किसी के वश न होनेवाले ये इन्द्रिय रूपी हाथी मोक्षरूपी अमृतफलको देनेवाले ऐसे मनुष्यों के धर्मरूपी कल्पवृक्ष को क्षण भरमें जड़ मूलसे उखाड़ कर फेंक देते हैं ॥६३॥
तथादसिनोऽदांता धर्मकल्पद्रुमं क्षणात्