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मूलाचार प्रदीप]
(११०)
[ तृतीय अधिकार अर्थ-इन पांचों इंद्रियों में से स्पर्शन इंद्रिय और रसना वा जिह्वा इंद्रिय ये बोनों इंद्रियां कामेन्द्रिय कहलाती हैं और मनुष्यों के लिये अनेक महा अनर्थ उत्पन्न करनेवाली हैं ॥६७६॥
प्राणेंद्रिय, चक्षुरिन्द्रिय एवं श्रोत्रन्द्रिय ये ५ भागेन्द्रिय हैंश्रोत्रं घ्राणेन्द्रियं चक्षुरिमारिए श्रीणि संस्तौ। भोगेन्द्रियाणि जंतूनां स्तोकानर्थकराप्यपि ॥
अर्थ-इसी प्रकार श्रोत्रेन्द्रिय, प्राणेन्द्रिय और चाइन्द्रिय ये सीन इन्द्रियों भोगेन्द्रिय कहलाती हैं और जीवों को थोड़ा ही अनर्थ करती हैं ॥६७७।।
पांचों इन्द्रियां चोर हैंइमे पंचेन्द्रियाश्चौरा धर्मरत्नापहारिणः । जिताः संयमबाणये सुखनिस्तेम चापरे ॥६७८।।
अर्थ-ये पांचों इन्द्रियां चोर हैं और धर्मरूपी रत्नको चराने वाली हैं। जिन संयमियों ने अपने संयम वारणों से इनको जीत लिया है इस संसार में वे ही सुखी हैं अन्य नहीं ॥६७८॥
ये इन्द्रिय रूपी हाथी बड़े प्रबल हैंधावन्तो विषयारण्ये तेिन्द्रियदन्तिमः । निराम्याकुशेनात्र यतास्तेविवाकराः ॥६७६।।
अर्थ-ये इन्द्रियरूपी हाथी बड़े ही प्रबल हैं और विषय रूपी वनमें दौड़ लगा रहे हैं । जो लोग संसार शरीर और भोगों के वैराग्यरूपी अंकुम से इन इन्द्रिय रूपी हाथियों को वशमें कर लेते हैं उन्हें ही सबसे उत्तम ज्ञानी समझना चाहिये ।।६७६।।
ये घोर बड़े ही क्रूर हैंपंचाक्षतस्कराः क रास्तपः सुभट ताडिताः। विघटते सतां मोक्षमार्गे विघ्नविधायिनः ॥६८०॥
अर्थ---ये पंचेन्द्रियरूपी चोर बड़े ही ऋर हैं और सज्जम पुरुषों को मोक्षमार्ग में विघ्न करनेवाले हैं ऐसे ये चोर तपश्चरणरूपी योद्धानों से ताडित होनेपर भी इधर उधर भागते हैं ।।६८०॥
पालतू सर्प के समान ये इन्द्रियां स्वामी की ही मार डालती हैंपथात्र पोषिसा नागा नयन्ति स्वामित्रो बलात् । यमान्तं च तया पंचेग्निया श्व हि सप्तमम् ॥
__ अर्थ-जिस प्रकार पालन पोषण किये हुये पालतू सर्प अपने स्वामी को ही जबर्दस्ती यम मंदिर तक पहुंचा देते हैं मार डालते हैं उसी प्रकार ये पांचों इन्द्रियां भी